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प्रशस्तिगत वे पद्य इस प्रकार हैं
तस्यानेकगुणस्य शस्यधिषणस्यामहँसिंहस्य स ख्यातः सूनुरभूत् प्रतापवसतिः श्री लक्ष्मणाख्यः क्षितौ । यं वीक्ष्येति वितक्यते सुकविभिर्नीत्वा तनुं मानवी धर्मोऽयं नु नयोऽथवाऽथ विनयः प्राप्तः प्रजापुण्यतः ॥ १८ ॥ यशो
यलक्ष्मणस्यैणलक्ष्मणाऽत्रोपमीयते । शके न तत्र तैः साक्षाच्चिल्लाक्षर्लक्ष्म लक्षितम् ॥ १९ ॥ स नय-विनयोपेतैर्वाक्यैर्मुहुः कविमानसं सुकृत-सुकृतापेक्षो दक्षो विधाय समुद्यतम् । श्रवणयुगलस्याऽऽत्मीयस्यावतंसकृते । कृतीस्तु विशदमिदं शास्त्राम्भोज सुबुद्धिरकारयत् ॥ २१ ॥ अथाऽस्त्यग्रोतकानां सा पृथ्वी पृथ्वीव सन्ततिः । सच्छायाः सफला यस्यां जायन्ते नर-भूरुहाः ॥ २२ ॥ गोत्रं गार्ग्यमलञ्चकार य इह श्रीचन्द्रमाश्चन्द्रमोबिम्बास्यस्तनयोऽस्य धीर इति तत्पुत्रश्च होंगाभिधः । देहे लब्धनिजोद्भवेन सुधियः पद्मश्रियस्तत्स्त्रियो नव्यं काव्यमिदं व्यधायि कविनाऽर्हत्पादपद्मालिना ।। २३ ।।
(१. पदादिवर्णसंज्ञेन गोविन्देन) इसी कारण पं० गोविन्दने इसे श्री लक्ष्मणके नामसे अंकित किया है। जैसा कि 'अवसर' के अन्तमें पाई जानेवाली पुष्पिकाओंसे स्पष्ट है
इति श्री पंडित गोविन्द-विरचिते पुरुषार्थानुशासने कायस्थमाथुरवंशावतंस
श्री लक्ष्मणनामाङ्किते गृहस्थधर्मोपदेशाख्योऽयं षष्ठोऽवसरः ॥ ६ ॥ "भट्टारक-सम्प्रदायमें मलयकीत्ति' नामके दो भट्टारकोंका उल्लेख है। एक वे जिन्होंने वि० सं० १५०२ में एक मंत्रको लिखाया और वि० सं० १५१० में एक मूत्ति प्रतिष्ठित करायी। दूसरे वे जिनके पट्टशिष्य नरेन्द्रकीत्तिने पिरोजसाहकी सभामें समस्या पूर्ति करके जिनमन्दिरके जीर्णोद्धार कराने की अनुज्ञा प्राप्त की। पिरोज साह या फिरोज शाहने वि० सं० १४९३ में दिल्लीके समीप फेरोजाबाद बसाया था। इस प्रकार दोनों ही मलयकीत्ति इसीके बाद हुए सिद्ध होते हैं । संभवतः दूसरे मलयकीर्तिके दूसरे शिष्य कमलकत्ति हुए हैं, उनके समयमें पुरुषार्थानुशासन रचा गया है, अतः पं० गोविन्दका समय विक्रमकी सोलहवीं शतीका पूर्वार्ध जानना चाहिए।
३३. कुन्दकुन्द-श्रावकाचार-स्वामी कुन्दकुन्द यद्यपि प्रस्तुत श्रावकाचारके रचयिताने प्रथम उल्लासके अन्तमें दी गई पुष्पिकामें अपनेको श्री जिनचन्द्राचार्यका शिष्य स्पष्ट शब्दोंमें घोषित किया है और ग्रन्थारम्भके तीसरे श्लोकमें 'वन्दे जिनविधुं गुरुम्' लिखकर अपने गुरु जिनचन्द्रको वन्दन किया है, तथापि प्रस्तुत श्रावकाचारके रचयिता दि० सम्प्रदायमें गौतम गणधरके बाद स्मरण किये जानेवाले 'कुन्दकुन्द' नहीं है । यह
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