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६. श्रावकाचारसारोद्धार - प्रशस्ति
यस्य तीर्थंकरस्येव महिमा भुवनातिगः । रत्नकीत्तिर्यतिः स्तुत्यः स न केषामशेषवित् ॥ १ ॥ अहंकारस्फारी भवदमितवेदान्तविबुधोल्लसद्-ध्वान्तश्रेणीक्षपणनिपुणोक्तिद्युतिभरः । अधोती जैनेन्द्रेऽजनि रजनिनाथप्रतिनिधिः प्रभाचन्द्रः सान्द्रोदयशमिततापव्यतिकरः ॥ २ ॥ श्रीमत्प्रभेन्दु प्रभुपाद सेवाहेवा किचेताः प्रसरत्प्रभावः ।
सच्छ्रावकाचारमुदारमेनं श्रीपद्मनन्दी रचयाञ्चकार ॥३॥ श्रीलम्बकञ्चुक कु विततान्तरिक्षे कुर्वन् स्वबान्धव सरोज विकासलक्ष्मीम् । लुम्पन् विपक्ष कुमुदव्रजभूरिकान्ति गोकर्णहेलिरुदियाय लसत्प्रतापः ॥४॥ भुवि सूपकारसारं पुण्यवता येन निर्ममे कर्म । भूम इव सोमदेवो गोकर्णात्सोऽभवत्पुत्रः ॥५॥ सती - मतल्लिका तस्य यशः कुसुमवल्लिका । पत्नी श्रीसोमदेवस्य प्रेमा प्रेमपरायणा ||६|| विशुद्धयोः स्वभावेन ज्ञानलक्ष्मीजिनेन्द्रयोः । नया इवाभवन् सप्त गम्भीरास्तनयास्तयोः ॥७॥ वासाधर- हरिराजौ प्रह्लादः शुद्धधीश्च महराजः । भावराजोऽपि रत्नाख्यः सतनाख्यश्चेत्यमी सप्त ॥८॥ वासाधरस्याद्भूत भाग्यराशेभिषात्तयोर्वेश्मनि कल्पवृक्षः । अगण्य पुण्योदयतोऽवतीर्णो वितीर्णचेतोऽतिवितार्थसार्थः ॥९॥
प्रशस्तिका अनुवाद
तीर्थंकरके समान जिसकी महिमा लोकातिशायी है, वह समस्त शास्त्रोंका वेत्ता रत्नकीर्ति यति किनके द्वारा स्तुति करनेके योग्य नहीं है ।। १ ।। उनके पट्ट पर प्रभाचन्द्रका उदय हुआ, जो कि सूर्यके सन्तापका शमन करने वाला है, जो बड़े-बड़े वेदान्ती विद्वानोंके अहंकारका तिर - स्कार करनेवाला है, जेनेन्द्र शासन या जेनेन्द्र व्याकरणका अध्येता है और जो निशानाथ चन्द्रका प्रतिनिधि है । उन श्रीमान् प्रभाचन्द्र प्रभुके चरण सेवामें निरत चित्त एवं प्रसरत् प्रभावी श्रीपद्मनन्दीने इस उत्तम उदार श्रावकाचार को रचा ॥२-३||
श्रीलम्बकञ्चुक ( लमेचू ) कुलमें श्रीगोकर्ण रूप सूर्यका उदय हुआ, जोकि इस विस्तृत गगनमें अपने बान्धवरूप सरोजोंको विकसित करनेवाला और विपक्षी कुमुद- समूहकी भारी कान्तिको विलुप्त करनेवाला एवं प्रतापशाली था ॥ ४ ॥ उस गोकर्णसे सोमदेव नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने कि इस भूतलपर सूपकार ( विविध व्यंजनों ) के सारभूत कार्यका निर्माण किया ॥ ५ ॥ उस श्री सोमदेवकी पति-प्रेम-परायणा प्रेमा नामकी पत्नी थी, जो कि सतियोंमें शिरोमणि और यशरूप पुष्पोंकी वेलि थी ॥ ६ ॥ विशुद्धाचरणवाले इन दोनोंके सात पुत्र उत्पन्न हुए, जोकि जिनेन्द्रदेव और उनकी ज्ञानलक्ष्मीसे उत्पन्न हुए सात नयोंके समान गम्भीर स्वभाववाले हैं ॥ ७ ॥ उनके नाम इस प्रकार हैं- १. वासाधर, २: हरिराज, ३. प्रह्लाद, ४. महाराज, ५. अम्बराज, ६. रतन, और ७. सतना । ये सभी सातों ही पुत्र शुद्ध बुद्धि हैं ॥ ८ ॥
उन सोमदेव और प्रेमादेवीके धरमें वासाधरके अद्भुत भाग्यराशिके मिषसे मानों अगणित पुण्योदयसे याचकोंको भरपूर अर्थं वितरण करनेवाला कल्पवृक्ष ही अवतरित हुआ ॥ ९ ॥ उस
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