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________________ लाटी संहिता प्रशस्ति २३३ योषितो देविलाख्यायाः पुंसो भारूसमाह्वयात् । चत्वारस्तत्समाः पुत्राः समुत्पन्नाः क्रमादिह ॥१२॥ तत्रादिमः सुतो दूदा द्वितीयः ठुकरायः । तृतीयो जगसी नाम्ना तिलोकोऽभूच्चतुर्थकः ॥१३॥ दूदाभार्या कुलांगासीन्नाम्ना ख्याता उवारही । तयोः पुत्रास्त्रयः साक्षादुत्पन्नाः कुलदीपकाः ॥१४॥ आद्यो न्योता द्वितीयस्तु भोल्हा नाम्नाथ फामनः । न्योता संघाधिनाथस्य द्वे भायें शुद्धवंशजे ॥१५॥ आधा नाम्ना हि पनाही गौराही द्वितीया मता । पनाहीयोषितस्तत्र न्योतसंघाधिनाथतः ॥१६॥ पुत्रश्च देईदासः स्यादेकोऽपि लक्षायते । गोराहीयोषितः पुत्राश्चत्वारो मदनोपमाः ॥१७॥ न्योतासंघाधिनाथस्य स्ववंशावनिचक्रिणा । तत्रोद्योङ्गजो गोपा हि सामा पुत्रो द्वितीयकः ॥१८॥ तृतीयो घनमल्लोऽस्ति ततस्तुर्यो नरायणः । भार्या देईदासस्य रामही प्रथमा मता ॥१९॥ कामही द्वितीया जेया भतुश्छन्दानुगामिनी । रामूहीयोषितः पुत्रा देईदासस्य सनि ॥२०॥ प्रथमश्चास्यया साधू द्वितीयो हरदासकः । ताराचन्द्रस्तृतीयः स्याच्चतुर्थस्तेजपालकः ॥२१॥ पञ्चमो रामचन्द्रश्च पञ्चापि पाण्डवोपमाः । साधूभार्या मथुरी च या गंगा शुद्धवंशजा ॥२२॥ गोपाभार्या समाख्याता अजवा शुद्धवंशजा। सामाभार्या च पूरी स्याल्लावण्यादिगुणान्विता ॥२३॥ घनमल्लस्य भार्या स्याद्विख्याता हि उद्धरही । भोल्हासंघाधिनाथस्य भार्यास्तिस्त्र: कुलाङ्गनाः ॥२४॥ काजाही योषितः पुत्राः पञ्च प्रोच्चण्डविक्रमाः। प्रथमो बालचन्द्रः स्याल्लालचन्द्रो द्वितीयकः ॥२५॥ उस देविलानामकी स्त्रीसे चार पुत्र उत्पन्न हुए थे। उनके अनुक्रमसे ये नाम थे ॥१२॥ पहले पुत्रका नाम दूदा था, दूसरेका नाम ठुकर था, तीसरेका नाम जगसी था और चोथेका नाम तिलोक था ॥१३॥ अपने कुलको सुशोभित करनेवाली दूदाकी स्त्रीका नाम उवारही था। उससे दूदाके तीन पुत्र उत्पन्न हुए हैं जो कि अपने कुलको प्रकाशित करनेवाले दीपकके समान हैं ॥१४॥ पहले पुत्रका नाम न्योता है, दूसरेका नाम भोल्हा है और तीसरेका नाम फामन है। उनमें से न्योता संघनायक कहलाता है। उसके शुद्ध वंशकी उत्पन्न हुई दो स्त्रियां हैं ॥१५॥ पहली स्त्रीका नाम पद्माही है और दूसरी स्त्रीका नाम गौराही है। उस न्योता नामके संघनायकके पनाही स्त्रीसे देईदास नामका एक पुत्र हुआ है जो कि एक होकर भी लाखोंके समान है तथा अपने वंशरूपी पृथ्वीको वश करनेके लिए चक्रवर्तीक समान । ऐसे न्योता नामक संघनायकके गौराही स्त्रीसे कामदेवके समान अत्यन्त सुन्दर चार पुत्र उत्पन्न हुए हैं। उनमेंसे पहले पुत्रका नाम गोपा है, दूसरेका नाम सामा है, तीसरेका नाम धनमल्ल है और चौयेका नाम नारायण है । देईदासके दो स्त्रियाँ हैं, पहलीका नाम रामूही है ।।१६-१९॥ तथा अपने पतिकी आज्ञानुसार चलनेवाली दूसरी स्त्रीका कामही है। देईदासके घर रामूही स्त्रीसे पांच पुत्र उत्पन्न हुए हैं। उनमेंसे पहलेका नाम साधु है, दूसरेका नाम हरदास है, तीसरेका नाम ताराचंद है, चौथेका नाम तेजपाल है और पांचवेंका नाम रामचन्द्र है । ये पांचों ही पुत्र पांचों पांडवोंके समान हैं। साधुकी स्त्रीका नाम मथुरी और शुद्ध वंशमें उत्पन्न होनेवाली गंगा है। ।।२०-२२॥ शुद्ध वंशमें उत्पन्न होनेवाली गोपाकी स्त्रीका नाम अजवा है तथा लावण्य आदि अनेक गुणोंको धारण करनेवाली सामाकी स्त्रीका नाम पूरी है ॥२३॥ धनमल्लको स्त्रीका प्रसिद्ध नाम उद्धरही है। यह न्योताका वंश बतलाया। भोल्हानामके संघनायकके तीन स्त्रियां हैं। ये तीनों ही कुलांगनाएं हैं ॥२४|| उनमेंसे छाजूही नामकी स्त्रीसे पांच पुत्र उत्पन्न हुए हैं जो बड़े ही पराक्रमी हैं। इनमेंसे पहलेका नाम बालचन्द्र है, दूसरेका लालचन्द्र है, तोसरेका नाम निहालचन्द्र है, चौथेका नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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