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निवीषिकादण्डक
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जीवलोयम्मि ईसिपब्भारतलगयाणं सिद्धाणं बुद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं णोरयाणं णिम्मलाणं गुरु-आयरिय-उवज्झायाणं पवत्ति-थेर-कुलयराणं चाउव्वण्णो य समणसंघो य भरहेरावएसु दससु, पंचसु महाविदेहेसु जे लोए संति साहवो संजदा तवस्सी एदे मम मंगलं पवित्तं एदे हं मंगलं करेमि भावदो विसुद्धो सिरसा अहिवंदिऊण सिद्ध काऊण अंजलिं मत्थयम्मि तिविहं तियरण सुद्धो। भागमें अवस्थित जो सिद्ध हैं, बुद्ध हैं, कर्मचक्रसे विमुक्त हैं, नीरज हैं, निर्मल हैं, गुरु, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और कुलकर (गणधर और गणनायक) हैं, उनकी निषोधिकाओं को नमस्कार करता हूँ। ढाई द्वीप-सम्बन्धी पाँच भरत और पांच ऐरावत इन दश क्षेत्रोंमें, तथा पंच महा विदेहोंमें जो ऋषि, यति, मुनि-अनगाररूप चातुर्वर्ण श्रमणसंघ है, मनुष्य लोकमें जितने साधु हैं, संयत हैं, तपस्वी हैं, ये सब मेरे लिए पवित्र मंगलकारी होवें। भावसे तथा त्रिकरण (मन वचन काय) से शुद्ध होकर त्रिविध (देव वन्दना, प्रतिक्रमण और स्वाध्यायरूप) क्रियानुष्ठानके समय में मस्तक पर अंजुली रखकर और वन्दना करके नमस्कार करता हूं।
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