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________________ गाथानुक्रमणिका १६१ वसुनं० ५१३ भावसं० ६१ भावसं० ६४ वसुनं० ४९४ सावय० १६ वसुनं० ५२३ सावय० ५९ , २५ , १४८ , १७ वसुनं० १९० ॥ २३९ अइणिठुरफरुसाइ अणिमा महिमा लघिमा वसुनं० १३५ बइतिव्वदाहसंतावियो अणुकूलं परियणयं अइबालबुड्डरोगा अणुपालिकण एवं अइबुड्डबालमूयंध अणुमइ देह ण पुच्छियउ अइलंधिओ विचिट्ठो ७१ अणुलोहं वेदंतो अइ वा पुवमि भवे १४६ अणुवयगुणसिक्खा अइसरसमइसुगंधं २५२ अण्णाएं आवंति जिय अकयणियाणं सम्मो भावसं. ५६ अण्णाएं दालिद्दियहं अक्खयवराडओ वा अण्णाए दालिद्दियह रे जिय अक्खेहि गरो रहिओ , ६६ अण्णाए बलियहं वि खउ अगणित्ता गुरुवयणं , १६४ अण्णाणि एवमाईणि अग्गिविसचोरसप्पा , ६५ अण्णाणिणो वि जम्हा अच्छउ भोयणु ताहं सावय० ३० अण्णाणी विसय विरत्तादो अच्छरसमज्झगया वसुनं० २६६ अण्णु जि सुललिउ मज्जविसप्पिणि भरहे धम्मज्झाणं रयण० ५१ अण्णे उ सुदेवत्तं मजविसप्पिणि भरहे पंचमयाले अण्णे कलंबवालय अजविसप्पिणि भरहे पउरा . अण्णो उ पावरोएण अज्झयणमेव झाणं रयण. ८३ अण्णोण्णाणुपवेसों अज्झावयगुणजुत्तो भावसं० २९ अण्णोण्णं पविसंता अट्टज्झाणपउत्तो अण्णोवि परस्स धणं अट्टरउद्द झाणं अतिहिस्स संविभागो अट्ठइ पालइ मूलगुण सावय० २६ अत्तागमतच्चाइयहं अट्ट कसाए च तों वसुनं० ५२१ अत्तागमतच्चाणं अट्ठदलकमलमज्झे , ४७० अत्तादोसविमुक्को अट्ठदसहत्यमेत्तं अत्थपरिणाममासिय अट्टविहबच्चणाए भावसं० १०६ अनउदयादो छण्हं अट्ठविहच्चण काउं अप्पाणं पि ण पिच्छइ अट्ठविहमंगलाणि य वसुनं० ४४२ अभयदाणु भयभीरुयहि अणउदयादो छण्हं उक्तं श्रा० सा० १, १५५ अभयप्पयाणं पढम अणउवइट्ठइ मण्णियइ सावय० २४ अमयक्खरे णिवेसिउ अणयाराणं वेज्जावच्चं रयण० २४ अयदंड पास विक्कय रयण० ६३ वसुनं० ३५ , २६९ २१९ सावय० १९ वसुनं. ६ " २७ ,, १२० स्वामिका० ८ रयण० ७७ सावय० १५६ भावसं० १४० वसुनं० २१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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