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श्रावकाचार-संग्रह त्रुटचन्ते च मृणालनालमिव वा मर्माणि दुष्कर्मणां तेन ध्यानसमं न किञ्चन जनैः कर्तव्यमस्त्यद्भुतम् ॥९५ इति श्रीकुन्दस्वामिविरचिते श्रावकाचारे जन्मचर्यायां
ध्यानस्वरूपनिरूपणो नाम एकादशोल्लासः ।
मर्म कमल-नालके समान क्षणभरमें टूट जाते हैं, इस कारण ध्यानके समान और कोई भी वस्तु आत्माकी कल्याण करनेवाली नहीं है। अतएव विवेकी जनोंको यह अद्भुत (आश्चर्य-कारक) ध्यान अवश्य ही करना चाहिए ।।९५॥
इस प्रकार श्रीकुन्दकुन्दस्वामि-विरचित श्रावकाचारमें जन्मचर्याके
अन्तर्गत ध्यानके स्वरूपका वर्णन करनेवाला
ग्यारहवाँ उल्लास समाप्त हुआ।
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