SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ श्रावकाचार-संग्रह कालबष्टोऽपि सूर्यस्य दिनेऽष्टाविंशतिघंटो । जीवत्यतो मृतो नो चेद्दलितं कालमर्मवित् ।।२१२ दिने कस्यापरात्तोऽपि स्वास्थ्याकृद विंशती घटी। पश्चादष्टादशघटीर्मोही भवति निश्चितः ।।२१३ सोमादीनां दिनेष्वेवं यद्यः काले परात्तयोः । कालस्य प्रथमा पश्चादपरात्तस्य च क्रमात् ॥२१४ सोमस्य दिवसे कालावधौ घटयो जिनैः समाः। स्वास्थ्याय षोडश ततो मोहायाष्टादशः स्फुटः ॥२१५ भौमस्य विवसे कालघटिका विशतिर्भवेत् । घटिका द्वादश स्वास्थ्ये पत्रिंशा मोहनाडिकाः ॥२१६ बुधस्य दिवसे ज्ञेया घटयः कालस्य षोडश । स्वास्थ्यस्य घटिकाश्चाष्टौ मोहे सार्द्धदिनं ततः ।।२१७ वृहस्पतिदिने कालघटिका द्वादश स्मृताः । चतस्रो घटिकाः स्वास्थ्येष्वह मोहोऽथ षट् घटी ॥२१८ शुक्रस्य दिवसे कालघटिका अष्ट निश्चितम् । घटयोऽष्टाविंशतिः स्वास्थ्ये मोहो दिनचतुष्टयम् ॥२१९ शनैश्चरदिने कालघटिकानां चतुष्टयम् । घटयो जिनैः समा स्वास्थ्ये मोहे षट्सार्धका दिनाः ॥२२० कालोऽत्या शनेरन्त्या घटी जीवे परान्तकः । काल एवं भवेन्नित्यं सर्वप्रहरकान्तरे ॥२२१ नाभिदेशतलस्पष्टो निर्दग्धस्येव वह्निना । दष्टस्य जायते स्फोटो शेयो नेतापरोऽन्तकः ॥२२२ पनः कण्ठं तवस्पर्शी महापद्मः स्वसित्यलम् । शङ्खो हसतिभूप्रादी पुलको वामचेष्टितः ॥२२३ सूर्यके कालमें (रविवारको) डंसा हआ व्यक्ति अठाईस घड़ी जीवित रहता है । इसलिए यदि वह तब तक मरा न हो तो वह जी जाता है, ऐसा कालके जाननेवालोंका कहना है ।।२१२।। सोम आदि किसी भी दिन डसनेपर भी बीस घड़ी अस्वस्थता करनेवाली होती है. पश्चात् अठारह घड़ी तक नियमसे मूर्छा रहती है ॥२१३।। सोम आदि वारोंमें जिस-जिस नागके डसनेका जो काल बताया गया है, उस-उस कालम पहिले और पीछे उक्त क्रम जानना चाहिए ।।२१४।। सोमवारके दिन अपने कालके भीतर तीर्थंकर जिनोंके समान अर्थात् चौबीस घड़ी अस्वस्थता रहती है, पुनः सोलह घड़ी स्वस्थताके लिए कही गई है। तथा मू के लिए अठारह घड़ी काल होता है ॥२१५।। मंगलवारके दिन बीस घड़ी काल निश्चित है। तत्पश्चात् बारह घड़ी स्वस्थताके लिए तथा छत्तीस घड़ा मू के लिए कही गई है ।।२१६|| बुधके दिन सोलह घड़ी कालको निश्चित हैं। स्वस्थताक लिए आठ घड़ी और मू के लिए आधा दिन सहित एक अर्थात् डेढ़ दिन कहा गया है ॥२१७।। गुरुवारके दिन बारह घड़ी काल कहा है। इसमेंसे चार घड़ी स्वस्थताके लिए, पुनः छह घड़ी मोहके लिए कही गई हैं ॥२१८।। शुक्रवारके दिन आठ धड़ी कालकी निश्चित हैं । अट्ठाईस घड़ी स्वस्थताके लिए निश्चित है और चार दिन मू के होते हैं ॥२१९|| शनिवारके दिन चार घड़ी कालका प्रमाण है और स्वस्थताके लिए चौबीस घड़ी तथा मोहके साढ़े छह दिन कहे गये हैं ।।२२०॥ शनिके दिन उसनेके तत्काल बादका समय जीवके लिए काल स्वरूप है, किन्तु शनिवारको अन्तिम घड़ी जीवन में सहायक है, इसके पश्चात् यमराज उद्यत हैं। सभी दिनोंके सर्व प्रहारोंके अन्तरालमें काल ही सदा बलवान् होता है ।।२२।। सपके काटने के बाद नाभिदेशके तलभागमें अग्निसे जले हुएके समान स्फोट (फफोला) होता है। इसमें अन्तक ( यमराज ) ही परम नेता है ॥२२२॥ पद्मसर्पके द्वारा काटे जानेपर कण्ठमें स्फोट होता है । महापपके द्वारा डसे जानेपर व्यक्ति बार-बार दीर्घ श्वास लेता है। शंखके द्वारा काटे जानेपर व्यक्ति हँसता है, पुलकित होता है, भूमिपर लोटता है और विपरीत चेष्टा करता है ॥२२३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy