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________________ । बाबकाचार-संग्रह अग्रस्थे यवा दूते वामा वहति नासिका। मुखाशिका तदा देश्या दष्टस्य गवहारिणा ॥१६७ वामायामपि नासायां यदि वायोः प्रवेशने । दूतः समागतः यस्य तदा नैवान्यथा पुनः॥१६८ दूतोक्तवर्णसङ्ख्याङ्को द्विगुणो भाजयेत् त्रिका । यद्येकः शेषतां याति तच्छुभं नान्यथा पुनः ॥१६९ दूते दिगाश्रिते जीवत्यहिदष्टो विदिक्षु न । प्रश्नेऽप्यन्तवंहद्वायो सति दूते न तत्कृतः ॥१७० प्रश्नं कृत्वा मुखं दूतो धत्ते स्वं मलिनं यदि । तदा दष्टादरो युक्तो विपर्यासे मृतस्तु सः ॥१७१ दूतस्य वदनं रात्रौ यदि सम्यग् न दृश्यते । तदा स्वस्मिन् मुखं ज्ञेयं मन्त्रिणा मलिनादिकम् ॥१७२ कण्ठे वक्षस्थले लिङ्गे मस्तके (नाभिके) गुदे । नासापुटे भ्रवोष्ठे (च योनी च) स्तनद्वये ॥१७३ पाणिपादतले सन्धौ स्कन्धे कर्णेऽलिके दृशोः । केशान्ते कक्षयोर्दष्टो दृष्टोऽन्तकपुरीजनैः ॥१७४ त्रुटघन्ति मूर्धजा येषां वष्टमध्येऽथ वा लवः । कण्ठग्रहो वपुःशीतं हिक्कासमकपोलता ॥१७५ भ्रमिर्मोहोऽङ्गसादश्च शशि-रव्योरवीक्षणम् । गात्राणां कम्पनं भङ्गो दृशो रक्ते सनिव्रता ॥१७६ लाला विरूक्षता पाण्डुरक्तं वाक्सानुनासिका । विपरोताथ वीक्षा च जुम्भा छायासुरङ्गिता ॥१७७ जब दूत आकर मंत्रज्ञाता पुरुषके आगे बैठे, उस समय यदि मंत्रज्ञकी वाम नासिका बहती हो, तब रोगका प्रतीकार करनेवाले पुरुषको सर्प-दष्ट पुरुषको मुखाशिका ( सर्प-दष्ट पुरुष जी जायगा, ऐसा आशा-भरा वचन कहना चाहिए ॥१६७। यदि वाम भी नासिकामें वायुके प्रवेश करनेके समय जिसका दूत आया हो, तब भी अन्यथा नहीं होगा, अर्थात् बच जायेगा ऐसा जान लेना चाहिए ॥१६८॥ _दूतके द्वारा कहे गये वर्णोंको संख्याके अंकोंको दूना कर तोनसे भाग देनेपर यदि एक शेष रहता है, तो शुभ है, अर्थात् सर्प-दष्ट पुरुष जी जायेगा। अन्यथा नहीं ॥१६९।। दूतके आकर दिशाके आश्रयसे बैठने पर सर्प-दष्ट पुरुषजीवित रहता है, किन्तु विदिशाओंमें बैठने पर जीवित नहीं रहता है। दूतके प्रश्न करने पर और भीतरकी ओर वायुके बहने पर भी जीवित नहीं रहता है ॥१७०॥ प्रश्न करके यदि दूत अपने मुखको मलिन रखता है, तब सर्प-दष्ट पुरुष आदर योग्य है। इससे विपरीत दशामें वह सर्प-दष्ट पुरुष मर गया, या मर जायगा, ऐसा जानना चाहिए ॥१७॥ यदि रात्रिमें दूतका मुख अच्छी तरहसे नहीं दिखता हो तो मंत्रज्ञाता पुरुषको अपने शरीरमें मुखको मलिनता आदिको जानना चाहिए ॥१७२॥ यदि सर्पने कण्ठमें, वक्षःस्थलमें, लिंगमें, मस्तकपर, (नाभिमें) गुदामें, नासा-पुट में, भौंहपर, ओठपर, (योनिमें) दोनों स्तनोंपर, हस्त और पादके तलभागमें, सन्धिमें, कन्धेपर, कानमें, दोनों आँखोंकी पलकपर, केशान्तमें (मस्तकमें) और दोनों आँखोंमें काटा है तो वह व्यक्ति यमपुरीके जनों द्वारा देखा गया है, अर्थात् मर जायगा, ऐसा जानना चाहिए ।।१७३-१७४।। सापके काटनेपर जिनके शिरके केश टूटने लगते हैं, अथवा डसे स्थानके बाल टूटते हैं, कण्ठग्रह हो अर्थात् बोलना बन्द हो जाय, शरीर ठंडा हो जाय, हिचकी लेने में अक्षम हो जाये, या हिचकी लेने में कपोलमें गह्वर हो जावे, चक्कर आने लग जावें, मूर्छा आ जावे, अंग-शैथिल्य हो, रात्रिमें चन्द्र और दिनमें सूर्य न दिखे, शरीरमें कम्पन होने लगे, या अंगोंका भंग होने लगे, नेत्र लाल हो जावें, निद्रा आने लगे, लाला (मुख-लार) में रूखापन आ जाये, मुख पांडु या रक्त वर्णका हो जावे, बचनोंका बोलना नासिकाके स्वरके अनुसार होने लगे, देखना विपरीत होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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