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________________ कुन्दकुन्द श्रावकाचार ७३ त्रिमासिकं तु आग्नेयं वायव्यं च द्विमासिकम् । मासमेकं च वारुण्यं माहेन्द्रं सप्तरात्रिकम ॥३३ 'मण्डलेऽग्नेरष्टभिर्मासैाभ्यां वायव्यके शुभः । पुनरित्युक्तेनास्मिन् सर्व शुभदं वदेत् ॥३४ आग्नेये पोड्यते याम्यां वायव्ये पुनरुत्तराम । वारुणे पश्चिमां तत्र पूर्वां माहेन्द्रमण्डलम् ॥३५ मासक्षपूर्णिमा हीना समाना यदि वाऽधिका । समघं समाधं च महाघं च क्रमाद् भवेत् ॥३६ एकमासे रवेराः स्युः पञ्च न शुभप्रदाः। आमावास्यार्कवारेण महाघस्य विधायिनी ॥३७ वारेष्वर्काकिभौमानां सङ्क्रान्तिम॒गकर्कयोः । यदा तदा महर्घ स्यादभियुद्धादिकं तथा ॥३८ मृगकर्काजगोमीनेष्वर्को वामाघ्रिणा निशि । अह्नि सप्तसु शेषेषु प्रचलेदक्षिणाधिणा ॥३९ स्वे स्वे राशौ स्थिते सौस्थ्यं भवेद्दौस्थ्यं व्यतिक्रमे । चिन्तनीयस्ततो यत्नाद्राम्यहं प्रोक्तसङ्क्रमः ॥६० आर्द्रान्त्यर्थे तथा स्वातौ सति राहौ यदा शशी। रोहिणीशकटस्थान्तर्याति दुभिक्षकृत्तदा ॥४१ सन्धि यह अन्तिम दो मण्डलोंमें जाने। इससे विपरीत आदिके दो मण्डलोंमें फलको जानना चाहिए ॥३२।। उक्त आग्नेयादि मण्डलों में होनेवाले लक्षण आठ मास या दो मासके द्वारा शुभप्रद होते हैं किन्तु ऐसा कहना सर्वथा उचित नहीं है, क्योंकि आग्नेयमण्डल यमदिशाको पीड़ित करता है, वायव्यमण्डल उत्तर दिशाको, वारुणमण्डल पश्चिम दिशाको और माहेन्द्रमण्डल पूर्व दिशाको पीड़ित करता है ॥३४-३५।। मासके नक्षत्रसे यदि पूर्णमासी हीन, समान या अधिक हो तो क्रमशः वस्तुओंके मूल्य समर्ध ( सस्ते ) समार्ध ( सम ) और महार्घ (तेज) होते हैं ॥३६।। भावार्थ-यदि विवक्षित मासकी पूर्णमासी उस नक्षत्रसे हीन है, अर्थात् उस मासके नामवाला नक्षत्र पूर्णमासीके दिन नहीं है, तो वस्तुओंके मूल्य तेज होंगे। यदि पूर्णमासीके दिन माससंज्ञिक नक्षत्र है तो वस्तुओंके मूल्य सम (स्थिर) रहेंगे। यदि माससंज्ञिक नक्षत्रकी वृद्धि हो तो वस्तुओंके मूल्य मन्दे होंगे। यदि एक मासमें रविवार पाँच हों तो शुभप्रद नहीं हैं। रविवारके साथ यदि अमावस्या होती है तो वह वस्तुओंके मूल्यको बढ़ानेवाली होती है ॥३७॥ जब रविवार, शनिवार और भीमवारके दिनमें मृग (मकर) और कर्ककी संक्रान्ति होती हैं, तब वस्तुओंके मूल्य बढ़ते हैं, तथा सामनेवाले व्यक्तिके साथ युद्ध आदिक होते हैं ॥३८॥ मकर, कर्क, वृष, मिथुन, मीन इन राशियोंके सूर्य होनेपर रात्रिमें वामपाद आगे करके गमन करे। शेष सात राशियोंमें सूर्य होनेपर दिनमें दक्षिणपादको आगे करके चले ॥३९।। सूर्य और चन्द्रके अपनी अपनी राशिमें स्थित होनेपर गमन करनेमें स्वस्थता रहती है और व्यतिक्रम होनेपर दुःस्थिता रहती है। इसलिए प्रयत्नपूर्वक रात और दिनमें उपरि-कथित गमन करनेका विचार चिन्तनीय है ॥४०॥ आके अन्त्यासे * यहां आदर्श प्रतिमें श्लोकाङ्क २९ से ३३ तकके श्लोक नहीं थे, उन्हें वर्ष-प्रबोधसे लेकर स्थान-पूर्ति की गई है। -सम्पादक । वर्षप्रबोष १,५७। मासाभिषाननक्षत्रं राका क्षोयते यदि। महात्वं तदा नूनं वृद्धी ज्ञेया समर्धता। मासनामकनक्षत्र राकायां न भवेद् यदा । महधं च तदावश्यं तत्तद्योगनिमित्ततः। ऋक्षवृदी रसाधिक्यं कणाधिक्यं व निश्चितम् । योगाधिक्ये रसच्छेदो दिनाधप्रत्यहं स्फुटः ।। (वर्षप्र०८, श्लोक ४६-४८) १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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