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________________ शफरो मकरः शङ्कः पचं पाणी स्वसम्मुखः । फलदः सर्वदेवान्त्यकाले पुनरसम्मुखः ॥६४ शतं सहस्त्रं लक्षं च कोटिनः स्ययंथाक्रमम। मीनादयःकरे स्पष्टाश्छिन्नभिन्नादयोऽल्पदाः ॥६५ सिंहासन-दिनेशाग्यां नन्द्यावर्तेन्दुतोरणः । पाणिरेखास्थितमाः सार्वभौमा न संशयः ॥६६ आतपत्रं करे यस्य दण्डेन सहितं पुनः । चामरद्वितयं चापि चक्रवर्ती स जायते ॥६७ श्रीवत्सेन सुखी चक्रेणोऊशः पविना धनी । भवेदेव कुलाकार-रेखाभिर्धामिकः पुनः ॥६८ यूपयानरथाश्वेभवषरेखाडिताः कराः । येषां ते परसैन्यानां हठग्रहण-कर्मठाः ॥६९ एकमप्यायुधं पाणी षट्त्रिंशन्मध्यतो यदि । तदा पररयोध्यः स्याद्वीरो भूमिपतिर्जयो ॥७० उड्डपो मङ्गिनी पोतो यस्य पूर्णः कराङ्करे । स्वरूप-स्वर्णरत्नानां पात्रं यात्रिकः परः ॥७१ त्रिकोणरेखया सोर-मूशलोदूखलादिना । वस्तुना हस्तजातेन पुरुषः स्यात कृषीबलः ॥७२ गोमन्तः स्युनराः शौचैमभिः पाणिसंस्थितैः। कमण्डलुध्वजो कुम्भस्वस्तिको श्रीप्रदो नृणाम् ॥७३ अनामिकान्तपर्वस्था प्रतिरेखा प्रभुत्वकृत । ऊर्ध्वा पुनस्तले तस्य धर्मरेखेयमुच्यते ॥७४ रेखाभ्यां मध्यमस्थाभ्यामाभ्यां प्रोक्तविपर्ययः । तर्जनी गृहबन्धान्तलेखा स्यात्सुखमृत्युदा ॥७५ अङ्गुष्ठा पितृरेखान्तस्तिर्यग्-रेखाफलप्रदा । अपत्यरेखाः सर्वाः स्युर्मत्स्याङ्गुष्ठतलान्तरे ।।७६ हस्ततलमें मत्स्य, मकर, शंख और कमलके चिह्न यदि स्व-सम्मुख हो तो वह सर्वदा ही फलप्रद होते हैं। यदि वे सम्मुख न हों तो अन्तिम समयमें फलप्रद होते हैं ॥६४॥ जिसके हस्ततलमें मीन आदि चिह्न स्पष्ट होते हैं तो वे यथाक्रमसे शत, सहस्र, लक्ष और कोटि-प्रमाण धन-सम्पदाके देनेवाले होते हैं । यदि वे स्पष्ट न हों, या छिन्न-भिन्न आदिके रूपमें हों तो वे अल्प फल-प्रद होते हैं ।।६५।। यदि हाथकी रेखाओंमें सिंहासन, सूर्य, नन्द्यावर्त, चन्द्र और तोरणके चिह्न अवस्थित हों तो मनुष्य सार्वभौभ चक्रवर्ती होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है ॥६६॥ जिसके हाथमें दंड-सहित छत्र हो और चामर-युगल भी हो तो वह मनुष्य चक्रवर्ती होता है ॥६७॥ हाथमें अवस्थित श्रीवत्ससे मनुष्य सुखी, चक्रसे भूपति, वज्रसे धनी और कुलाकार (वंशानुरूप) रेखाओस धार्मिक होता है ॥६८॥ यप (यज्ञकाष्ठ) यान (नाव, जहाज) रथ, अश्व, गज और वृषभ (बैल) की रेखाओंसे अंकित जिनके हाथ होते हैं, वे शत्रुकी सेनाओंको हठ-पूर्वक ग्रहण करने में कर्मठ होते हैं ।।६९|| जिसके हाथमें छत्तीस आयुधोंके मध्यमेंसे यदि एक भी आयुधका चिह्न होता है तो वह पुरुष दूसरोंके द्वारा अजेय, वीर, भूमिपति और विजयी होता है ॥७०।' जिसके हाथमें उड़प (डोंगी या छोटी नौका) मंगिनी (बड़ी नौका) और पोत (जहाज) पूर्णरूपसे विद्यमान हो, वह व्यक्ति सुन्दर स्वरूप, सुवर्ण और रत्नोंका पात्र उत्कृष्ट ऐसा समुद्र-व्यापारी होता है ॥७१।। हथेलीमें उत्पन्न हुई त्रिकोण रेखा, हल, मूशल, उखली आदि चिह्नोंसे मनुष्य उत्तम खेती करनेवाला किसान होता है ॥७२॥ हाथमें अवस्थित स्पष्ट पवित्र मालाओंसे मनुष्य गौधनवाले होते हैं । कमण्डलु, ध्वजा कुम्भ और स्वस्तिक चिह्न मनुष्यांको लक्ष्मीप्रद होते हैं ॥७३|| अनामिका अंगुली-पर्यन्त पर्व में स्थित प्रतिरेखा प्रभुता-कारक होती है। और यदि वह हस्ततलमें ऊपरकी ओर जा रही हो तो वह धर्मरेखा कही जाती है ॥७४।। मध्यमा अंगुलीपर अवस्थित इन दोनों रेखाओंके द्वारा उपर्युक्त फलसे विपरीत फल जानना चाहिए। तर्जनीसे गृहबन्ध तक जानेवाली अन्तर्लेखा सुखपूर्वक मृत्युको देती है ॥७५॥ अंगूठे और पितृ-रेखाके मध्यवर्ती तिर्यग्-रेखा उत्तम फलप्रद होती है। मत्स्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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