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________________ ४८ श्रावकाचार-संग्रह उल्लझ्यते च यावन्त्योऽङ्गल्यो जीवितरेखया । पञ्चविंशतयो ज्ञेयास्तावन्तः शरदां बुधैः ॥५३ मणिबन्धोन्मुखा आयुर्लेखायां यत्र पल्लवाः । सम्पदस्ते बहिर्भावा विपदोऽङ्गलिसम्मुखाः ॥५४ ऊर्ध्वरेखा मणेर्बन्धादूर्ध्वगा सा तु पञ्चधा । अङ्गष्ठाश्रयणी सौख्या राज्यलाभाय जायते ॥५५ राजा राजसदृक्षो वा तर्जनीयतपानया। मध्यमागतयाचार्यः ख्यातो लोकेऽथ सैन्यपः ॥५६ अनामिका प्रयान्त्यां तु सार्थवाहो महाधनः । कनिष्ठां गतया श्रेष्ठः सप्रतिष्ठो भवेद् ध्रुवम् ॥५७ आयुर्लेखावसानाभिलेखाभिर्मणिबन्धतः । स्पष्टाभितरोऽस्पष्टाश्चाभिरामयः पुनः ॥१८ आयुर्लेखा कनिष्ठान्ता लेखाः स्युगहिणीप्रदा । समाभिः शुभशीलास्ताः विषमाभिः कुशीलता ॥५९ अस्पष्टाभिरदीर्घाभिातृजाद्याश्च सूचिकाः । यवैरङ्गलमूलौत्थैस्तत्सङ्ख्याः सूनवो नृणाम् ॥६० पवैरङ्गष्ठमध्यस्थैविद्याख्यातिविभूतयः । शुक्ल पक्षे तथा जन्म दक्षिणाङ्गुष्ठतैश्च तैः ॥६१ कृष्णपक्षे नणां जन्म वामाङ्गुष्ठगतैयंवैः । बहूनामथ चैकस्य यवस्य स्यात्फलं समम् ॥६२ एकोऽप्यभिमुखः स्वस्य मत्स्यः श्रीवृद्धिकारणम् ।। - सम्पूर्ण किं पुनः सोऽपि पाणिमूले स्थितो नृणाम् ॥६३ तो उक्त तीनों भर-पूर नहीं होते हैं ॥५२।। जीवनकी रेखाके द्वारा जितनी अंगुलियाँ उल्लंघन की जाती हैं बुद्धिमानोंको उसको आयु उतने ही पच्चीस शरदऋतु-प्रमाण जानना चाहिए ॥५३॥ जिस आयु-रेखामें पल्लव मणिबन्धके सम्मुख होते हैं, वे सम्पत्तिके बहिर्भावके सूचक हैं और यदि वे अंगुलियोंके सम्मुख होते हैं तो वे विपत्तिके सूचक हैं ॥५४॥ ऊर्ध्व रेखा पाँच प्रकार की होती है वह यदि मणिबन्धसे ऊर्ध्व-गामिनी हो तो और पांचों अंगुलियोंके आश्रयसे पांच प्रकारके फलकी सूचक होती है। यदि वह उर्ध्व रेखा अंगूठेका आश्रय लेती हैं, तो वह सुखकारक एवं राज्यलाभके लिए होती है ॥५५॥ यदि वह ऊर्ध्व रेखा तर्जनीका आश्रय लेती है तो वह व्यक्ति राजा अथवा राजाके सदृश महापुरुष होता है । यदि वह ऊर्ध्व रेखा मध्यमा अंगुलीका आश्रय लेती है तो वह व्यक्ति प्रसिद्ध आचार्य अथवा सेनापति होता है ॥५६॥ यदि वह ऊर्ध्वरेखा अनामिका अंगुलीका आश्रय लेती है, तो वह व्यक्ति महाधनी सार्थवाह ( व्यापारी ) होता है । यदि वह ऊर्ध्व रेखा कनिष्ठा अंगुलीको प्राप्त होती है तो वह व्यक्ति निश्चयसे प्रतिष्ठा-युक्त श्रेष्ठ पुरुष होता है ॥५७॥ मणिबन्धसे लेकर आयु-रेखा तक जितनी रेखाएं स्पर्श करती हैं, वे उतने भाइयोंकी सूचक होती हैं। यदि वे स्पष्ट न हों, तो वे रोगादि व्याधियोंकी सूचक होती है ।।५८॥ आयु-रेखा कनिष्ठा अंगुली तक हो और अन्य रेखाएं भी हों तो वे गृहिणी-प्रदान करती हैं। यदि वे रेखाएँ सम हों तो उत्तम शीलवाली स्त्रियोंको देती हैं और यदि वे विषम हों तो कुशील स्त्रियोंको देती हैं ॥५९।। अस्पष्ट और छोटी रेखाएं भाई-भतीजे आदिकी सूचक हैं। अंगुलिके मूलभागसे उठे हुए यवोंसे तत्संख्या-प्रमाण मनुष्योंके पुत्रोंकी संख्या जानना चाहिए ॥६०॥ अंगूठेके मध्यमें स्थित यवोंसे मनुष्योंकी विद्या, ख्याति और विभूति सूचित होती है । तथा दाहिने हाथके अंगूठेमेंके यवोंसे मनुष्योंका जन्म शुक्ल पक्ष में हुआ जानना चाहिए ॥६१।। यदि वे यव वाम अंगूठेमें उत्पन्न हुए हों तो मनुष्योंका जन्म कृष्णपक्षमें हुआ जानना चाहिए। अंगुष्ठ-गत बहुतसे यवोंका और एक यवका फल समान ही होता है ॥६२॥ हस्त-तलमें एक भी अभिमुख मत्स्य-चिह्न अपने लिए लक्ष्मीकी वृद्धिका कारण है और यदि वह मत्स्य-चिह्न पूर्णरूपसे हाथके मूलभागमें स्थित हो तो फिर मनुष्योंकी लक्ष्मीका कहना ही क्या है ? अर्थात् वह अपार सम्पत्तिका स्वामी होता है ॥६३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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