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विकाधार-संग्रह "पाणेस्तलेन शोणेन धनी नोलेन मद्यपः । पोतेनागम्यनारोगः कल्माषेण धनोज्झितः ॥३४ वातोन्नततले पाणी निम्नो पितृधनोमितः । धनी संवृत्तनिम्ने स्याद्विषमे निर्धनः पुनः ॥३५ अरेखं बहुरेखं वा यस्य पाणितलं भवेत् । ते स्युरल्पायुषो निस्वा दुःखिता नात्र संशयः ॥३६ करपृष्ठं सुविस्तीर्ण पीनं स्निग्धं समुन्नतम् । श्लाघ्यो गूढशिरो नृणां फणभृत्फणसन्निभः ॥३७ 'विवणं परुषं रूक्षं रोमसं मांसजितम् । मणिबन्धसमं निम्नं न श्रेष्ठं करपृष्ठकम् ॥३८ "पाणिमूलं दृढं गूढं श्लाध्यं सुश्लिष्टसन्धिकम् । श्लथं सशब्दं होनं च निर्धनत्वादिदुःखदम् ॥३९ 'दोघंनिर्मासपर्वाणः सूक्ष्मा दीर्घाः सुकोमलाः । सुघनाः सरला वृत्ताः स्त्रीणामङगुलयः श्रिये ॥४०
यच्छन्ति विरलाः शुष्काः स्थूला वका दरिद्रताम् ।
शस्त्राघातं बहिनिम्नाश्चेटित्वं चिपटाश्च ताः ॥४१ अनामिकस्य रेखाया कनिष्ठा स्याद्यदाधिका । धनवृद्धिस्तदा पुंसां मातृपक्षो बहुस्तदा ॥४२ मध्यमा-प्रान्तरेखाया अधिका यदि तर्जनी । प्रचुरस्तत्पितुः पक्ष: श्रीश्च व्यत्ययतोऽन्यथा ॥४३ हस्ततल हो, वह पुरुष प्रशंसनीय होता है ॥३३॥ हाथका तल-भाग लाल होनेसे मनुष्य धनिक होता है, नीला होनेसे मद्यपायी होता है, पीला होनेसे अगम्य नारी गमन करने वाला होता है, अर्थात् गुरु-पत्नी आदि पूज्य और ज्येष्ठ स्त्रियोंका सेवन करता है । तथा कालावर्ण होनेसे मनुष्य धनसे रहित होता है ।।३४।। यदि हस्ततल गोल और गहरा हो तो मनुष्य धनी होता है, और यदि वह विषम हो तो मनुष्य धनसे रहित होता है । उन्नत हस्ततल होनेपर दान देनेवाला होता है और निम्न हस्ततल होनेपर पिताके धनसे रहित होता है ॥३५॥ जिसका हस्ततल रेखाओंसे रहित हो, या बहुत रेखाओं वाला हो तो वे मनुष्य अल्पायु, निर्धन और दुःख भोगनेवाले होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है ॥३६॥ जिसके हाथका पृष्ठभाग सुविस्तीर्ण हो, पुष्ट हो, स्निग्ध हो, उन्नत हो, गूढ नसोंवाला हो और सांपके फण-सदृश हो, वह मनुष्य प्रशंसनीय होता है ।।३७॥ जिसके हाथका पृष्ठभाग, विवर्ण, परुष, रूक्ष, रोमवाला और मांससे रहित हो, तथा मणिबन्धके समान निम्न हो वह उत्तम नहीं है ।।३८।। जिसके हाथका मूलभाग दृढ़ और परस्पर मिली हुई सन्धिवाला हो, वह प्रशंसनीय होता और जिसका शिथिल, शब्दयुक्त और हीन होता है, वह निर्धनता आदि दुःखोंको देनेवाला होता है ॥३९॥
स्त्रियोंकी अंगुलियाँ मांस-सहित लम्बी, पोरवाली, पतली, दीर्घ, सुकोमल, सुघन, सरल और गोल हों तो वे लक्ष्मी प्राप्त करानेवाली होती हैं ॥४०॥ विरल (दूर-दूर) शुष्क, स्थूल और वक्र अंगुलियाँ दरिद्रताको देती है यदि अंगुलियाँ बाहिरकी ओर निम्न हों तो शस्त्र-घात करानेवाली होती हैं और यदि चिपटी होती हैं तो चेटी या दासीपनेको प्रकट करती हैं ॥४१॥ अनामिका अंगुलीकी रेखासे यदि कनिष्ठा अंगुली अधिक बड़ी हो तो पुरुषोंके धनकी वृद्धि होती है और उसका मातृ-पक्ष बहुत बड़ा होता है ॥४२॥ मध्यमा अंगुलीकी समीपवर्ती रेखासे यदि तर्जनी अधिक बड़ी होती है तो पितृ-पक्ष बहुत बड़ा होता है और उसके लक्ष्मी भी होती हैं। यदि मध्यमा अंगुलीकी समीपवर्ती रेखासे तर्जनी छोटी होती हैं तो पितृ-पक्ष छोटा होता है और १. हस्तसं० पृ०७८ श्लोक १२। २. हस्तसं० पृ० ७८. श्लोक १३ । ३. हस्तसं० १० ७८ श्लोक १४ । ४. हस्तसं० श्लोक ७८ पृ० १५। ५. हस्तसं० पृ० ७८ श्लो० ११ । ६. हस्तसं० पृ० ७९ श्लोक २ । ७. हस्त सं० पृ० ८० श्लोक ३ ।
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