________________
( १८४ ) द्वादश उल्लास
१३३-१३९ दुःस्वप्न और दुनिमित्तादिमें मृत्युको समीप आयी हुई जानकर विवेकी पुरुष देव-गुरुका स्मरण कर संन्यास धारण करनेकी इच्छा करते हैं
१३३ जीवन भर पठित शास्त्रोंका, किये हुए तपका और पाले हुए व्रतका फल समाधिसे मरना
अल्प धन होने पर भी देनेकी इच्छाका होना, कष्ट आने पर भी सहन करना और मृत्युकाल । __ आनेपर भी धैर्य धारण करना महापुरुषका स्वभाव है।
१३३ आयु बढ़ानेका संसार में कोई उपाय नहीं, अतः समाधि-पूर्वक शरीर-त्याग करना ही कल्याण
कारक है, समाधि-पूर्वक शरीर-त्याग करनेवाला पुरुष ही सच्चा गुणी, सुभट और योगी है
१३४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org