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________________ कुन्दकुन्द-श्रावकाचारकी विषय-सूची न प्रथम उल्लास मंगलाचरण और सर्व शास्त्रोंका सार निकाल कर श्रावकाचारके कथनकी प्रतिज्ञा इष्टदेवका ध्यान कर रात्रिके अष्टम भाग शेष रहनेपर सो कर उठनेका विधान रात्रिमें उत्तम स्वप्न देखकर नहीं सोनेका और दुःस्वप्न देखकर पुनः सोनेका विधान नौ प्रकारके स्वप्नोंमेंसे अन्तिम तीन प्रकारके स्वप्न सत्य और फलप्रद होते हैं अशुभ स्वप्न देखनेपर शान्तिका विधान दक्षिण या वाम नासिका स्वरके अनुसार दक्षिण या वाम पाद भूमिपर रखकर शय्यासे उठनेका विधान पृथ्वी, जल तत्त्व आदिमें निद्रा विच्छेदके होनेपर सुख-दुःखादि देनेका वर्णन पृथ्वी आदि तत्त्वोंके परिवर्तन और प्रमाणका वर्णन पथ्वी आदि तत्त्वोंके चिन्होंका निरूपण दन्तधावन कर वजीकरण और उषा जल-पान का वर्णन प्रातःकाल नदी तीर आदिको छोड़कर एकान्त स्वच्छ स्थानमें मल-मूत्र करने का निरूपण शौच शुद्धि करके व्यायाम करनेका विधान चतुर्वर्णके मनुष्योंके लिए दातुनको लम्बाईका प्रमाण और विभिन्न प्रकारके वृक्षोंकी दातुनोंके ... गुणोंका वर्णन सूर्यग्रहण एवं अष्टमी आदि विशिष्ट तिथियोंमें काष्ठकी दातुन करनेका निषेध खाँसी-श्वांस आदिके रोग वाले मनुष्यको काष्ठ दातुन करनेका निषेध नासिकासे जल-पानके गुणोंका वर्णन दन्तधावन करके पूज्य एवं वृद्ध जनोंको नमस्कार करनेका विधान और उसके फलका वर्णन जलसे स्नान कर और मंत्रोंके द्वारा आत्माको पवित्र कर शुद्ध वस्त्र धारण करके घर में ___ स्थित देव पूजन करनेका विधान एकान्तमें मौन पूर्वक एवं जन-संकुल होनेपर शब्दोच्चारण पूर्वक जाप करनेका विधान पूजनके अनन्तर आगन्तुक मनुष्यके द्वारा किसी प्रकारका प्रश्न पूछने पर उसके फलाफल जानने और कहनेका विधान आचार्य, कवि, विद्वान्, और कलाकारोंको सदा प्रसन्न रखनेका विधान तत्पश्चात् सार्वजनिक धर्मस्थानमें जाकर देव पूजनादि करने का विधान जिनमन्दिर में पद्मासन और खड्गासन प्रतिमाके मान-प्रमाण आदिका विस्तृत वर्णन . १२ सौ वर्षसे अधिक प्राचीन वङ्गित भी प्रतिमाको पूज्यताका विधान । विभिन्न आकार वाली एवं हीनाधिक आकार वाली प्रतिमाओंके पूजनेके फलका निरूपण १४ जिन मन्दिरके प्रमाणके अनुसार प्रतिमाके निर्माणका निरूपण । १५ जिनमन्दिरके गर्भालयके पाँच भाग कर उनमें क्रमशः यक्ष, देवी आदिके स्थापनका निरूपण १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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