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________________ (१६८ ) चाहिए । सूतकमें दान, अध्ययन तथा जिन-पूजनादि शुभकर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि सूतकके दिनोंमें दान-पूजनादि करनेसे नीचगोत्रका बन्ध होता है। गोत्रके लोगोंको पांच दिन तक उक्त कार्य नहीं करना चाहिए। अन्य मतके अनुसार क्षत्रियों को पांच दिन, ब्राह्मणोंको दश दिन, वेश्योंको बारह दिन और शूद्र लोगोंको पन्द्रह दिन तक सूतक पालन करना कहा है। (देखो भाग २ पृ० १७४-१७५, श्लो० २५७-२६१) उक्त उद्धरणसे स्पष्ट है कि पं० मेधावीके समय सूतक-पातकका प्रचार था और उसमें भी दिनोंके विषयमें मान्यता-भेद था। पं० मेधावीके बाद रचे गये ३ श्रावकाचारोंमें भी सूतक-पातकका कहीं कोई विधान दृष्टिगोचर नहीं होता है । किन्तु त्रिवर्णाचारमें तथा किशन सिंह क्रिया कोषमें (भा० ५ पृ० १९५ पर, मूलाचार भाषाका उल्लेख कर इसका अवश्य विधान किया गया है। वह भी पाठकोंको द्रष्टव्य है। जन्मका सूतक मरणका सूतक १ तीन पीढ़ी तक १० दिन तीन पीढ़ी तक १२ दिन २ चौथी पीढ़ी ५ दिन चौथी पीढ़ी ६ दिन ३ शेष पीढ़ियोंको एक एक दिन कम शेष पीढ़ियोंको एकएक दिन कम ४ विवाहिता पुत्रीके अपने विवाहिता पुत्रीकी सन्तानके । घरमें प्रसूतिमें ३ दिन अपने घर मरने पर ३ दिन ५ पशुको प्रसूतिमें १ दिन पशुके मरने पर १ दिन संहिताओंमें यह भी लिखा है कि जहां जैसी प्रवृत्ति प्रचलित हो तदनुसार आचरण करना चाहिए। ____ लाटी संहिताकारने एषणा शुद्धिके लिए सूतक-पातक पालनेका अवश्य निर्देश किया है । यथा सूतकं पातकं चापि यथोक्तं जैनशासने । एषणाशुद्धिसिद्धयर्थ वर्जयेच्छ्रावकाग्रणीः ।-(भा० ३ पृ० १०७ श्लो० २५१) भावार्थ--उत्तम श्रावक भोजनकी शुद्धिके लिए सूतक-पातक वाले घरके भोजन-पानका त्याग करे। ४१. स्त्रीके मासिक धर्मका विचार यद्यपि प्राचीन श्रावकाचारोंमें रजस्वला स्त्रीके विषयमें कोई चर्चा नहीं है, क्योंकि उसका श्रावकके व्रतोंसे कोई सम्बन्ध नहीं है, फिर भी अर्वाचीन श्रावकाचारोंमें उसकी चर्चा की गई है। सर्वप्रथम रजस्वलाकी चर्चा पं० मेधावीने अपने धर्म-संग्रह श्रावकाचारमें की है और उसके कर्तव्योंका विस्तृत वर्णन करते हुए बताया है कि रजोदर्शनसे लेकर चतुर्थ दिनके स्नान करने तक वह मौनसे एकान्त स्थानमें रहे, उस स्थानकी वस्तुओंका स्पर्श न करे, नीरस भोजन करे, मिट्टीके बर्तनमें या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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