________________
कंदर पुलिण-गुहादिसु पवेसकाले निसिढियं कुब्जा। तेहितो बिग्गमणे तहासिया होदि कायव्वा ॥ १३४॥
(मूलाचार समा० बधि.) अर्थात्-गिरि-कंदरा, नदी आदिके पुलिन-मध्यवर्ती जलरहित स्थान बोर गुफा बादिमें प्रवेश करते हए निपिद्धिका समाचारको करे और वहाँसे निकलते या जाते समय आशिका समाचारको करे । इन दोनों समाचारोंका अर्थ टीकाकार आचार्य वसुनन्दिने इस प्रकार किया है :
टीका-पविसते य प्रविशति व प्रवेशकाले पिसिही निषेधिका तत्रस्थानमभ्युपगम्य स्थानकरणं, सम्यग्दर्शनादिषु स्थिरभावो वा, जिग्गमणे निर्गमकाले आसिया देव-गृहस्थादीन् परिपृच्छ यानं, पापक्रियादिभ्यो मनोनिवर्तनं वा।'
___ अर्थात्-साधु जिस स्थानमें प्रवेश करे, उस स्थानके स्वामीसे आज्ञा लेकर प्रवेश करें। यदि उस स्थानका स्वामी कोई मनुष्य है तो उससे पूछे और यदि मनुष्य नहीं है तो उस स्थानके अधिष्ठाता देवताको सम्बोधन कर उससे पूछे, इसीका नाम निसोहिका समाचार है। इसी प्रकार उस स्थानसे जाते समय भी उसके स्वामी मनुष्य या क्षेत्रपालको पूछकर और उसका स्थान उसे संभलवा करके जावे। यह उनका आसिका समाचार है। अथवा करके इन दोनों पदोंका टीकाकारने एक दूसरा भी अर्थ किया है। वह यह कि विवक्षित स्थानमें प्रवेश करके सम्यग्दर्शनादिमें स्थिर होने का 'निसीहिया' और पाप-क्रियाओंसे मनके निवर्तनका नाम 'आसिया' है। याचारसारके कर्ता आ० वीरनन्दिने उक्त दोनों समाचारोंका इस प्रकार वर्णन किया है :
जीवानां व्यन्तरादीनां बाधाय यन्निषेधनम् । अस्माभिः स्थीयते युष्मद्दिष्ट्येवेति निषिद्धिकाम् ॥११॥ प्रवासावसरे कन्दरावासानिपिद्धिका ।
तस्मान्निर्गमने कार्या स्यादाशीर्वैरहारिणी ॥१२॥-(आचारसार द्वि० ब०) अर्थात् व्यन्तरादिक जीवोंकी बाधा दूर करने के लिए जो निषेधात्मक वचन कहे जाते हैं कि भो क्षेत्रपाल यक्ष, हम लोग तुम्हारो अनुज्ञासे यहाँ निवास करते हैं, तुम लोग रुष्ट मत होना, इत्यादि व्यवहारको निषिद्धिका समाचार कहते हैं और वहाँ से जाते समय उन्हें वैर दूर करने वाला आशीर्वाद देना यह बाशिका समाचार है।
ऐसा मालूम होता है कि लोगोंने साधुओंके लिए विधान किये गये समाचारोंका अनुसरण किया और 'व्यन्तरादीनां बाधाय यन्निषेधनम्' पदका अर्थ मन्दिर प्रवेशके समय लगा लिया कि यदि कोई व्यन्तरादिक देव-दर्शनादिक कर रहा हो तो वह दूर हो जाय और हमें बाधा न 'दे। पर वास्तवमें 'निस्सही' पद बोलनेका अर्थ निषीधिका अर्थात् जिनदेवका स्मरण कराने वाले स्थान या उनके प्रतिबिम्ब के लिए नमस्कार अभिप्रेत रहा है।
जिन-मन्दिरमें प्रवेश करते समय 'निस्सही' पदका पूर्ण रूप णमो मिसीहियाएं है बौर इसका प्रकृतमें अर्थ है, इस जिन-मन्दिरको नमस्कार हो। इसे यतः जिन-मन्दिरमें प्रवेश करते हुए बोला जाता है, अतः मन्दिरकी देहलीको हायसे स्पर्श कर मस्तक पर लगाते हुए तीन बार बोलना चाहिए।
शास्त्रों के अवलोड़नसे यह भी ज्ञात होता है, कि मन्दिरमें प्रवेश करते समय पूर्वकालमें निषीधिकादंडक' वाला पाठ बोला जाता था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org