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लाटीसंहिता
उक्तं दिग्मात्रतोऽप्यत्र प्रसङ्गाद्वा गहिवतम् । वक्ष्ये चोपासकाध्यायं सावकाशं सविस्तरम् ॥१७३ इति दर्शनप्रतिमानामके महाधिकारे सम्यग्दर्शनसामान्यलक्षणवर्णनो नाम
द्वितीयः सर्ग: समाप्तः ॥२॥
इस प्रकार प्रकरणके अनुसार हमने यहाँ पर थोड़ा-सा गृहस्थोंका व्रत बतलाया है। आगे अवकाशके समय या धीरे धीरे विस्तारके साथ श्रावकाचारका वर्णन करेंगे ॥१७३।।
इस प्रकार दर्शनप्रतिमा नामके महाअधिकारमें सम्यग्दर्शनके सामान्य लक्षणका वर्णन
करनेवाला यह द्वितीय सर्ग समाप्त हुआ ॥२॥
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