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________________ श्रावकाचार-संग्रह उक्तंचजम्बूदोवे भरहे कोसल साकेय तग्घरायं च । खंघंडर आवाराा पुलवि सरीराणि विद्रुता ॥८ एतन्मत्वाऽहंता प्रोक्तमाजवञ्जवभीरुणा। कन्दादिलक्षणत्यागे कर्तव्या सुमतिः सती ॥८९ एवमन्यदपि त्याज्यं यत्साधारणलक्षणम् । प्रसाश्रितं विशेषेण तद्वियुक्तस्य का कथा ॥९० साधारणं च केषांचिन्मूलं स्कन्धस्तथागमात् । शाखाः पत्राणि पुष्पाणि पर्वदुग्धफलानि च ॥९१ तत्र व्यस्तानि केषाश्चित्समस्तान्यथ देहिनाम् । पापमूलानि सर्वाणि ज्ञात्वा सम्यक् परित्यजेत् ॥९२ मूलसाधारणास्तत्र मूलकाश्चाद्रकादयः । महापापप्रदाः सर्वे मूलोन्मूल्या गृहिवतैः ॥९३ स्कन्धपत्रपयः पर्व तुर्यसाधारणा यथा । गण्डोरकस्तया चार्कदुग्धं साधारणं मतम् ॥९४ - कहा भी है-जिस प्रकार जम्बूद्वीपमें भरतक्षेत्र है, भरतक्षेत्रमें कौशल आदि देश हैं, कौशल आदि देशोंमें साकेत आदि नगर हैं और उन नगरोंमें घर हैं उसी प्रकार इस लोकाकाशमें स्कन्धोंकी संख्या असंख्यात लोक प्रमाण है। प्रतिष्ठित प्रत्येक जीवोंके शरीरोंको स्कन्ध कहते हैं। लोकाकाशके जितने प्रदेश हैं उनको असंख्यातसे गुणा कर देनेपर जो आवे उतनी संख्या उन स्कन्धोंकी है तथा एक-एक स्कन्धमें असंख्यात लोकप्रमाण अंडर हैं। एक-एक अंडरमें असंख्यात लोकप्रमाण आवास हैं। एक-एक आवासमें असंख्यात लोकप्रमाण पुलवी हैं तथा एक एक पुलवीमें असंख्यात लोकप्रमाण निगोद शरीर हैं और एक-एक निगोद शरीरमें अनन्तानन्त जीव हैं ॥८॥ यही समझकर भगवान् अरहन्तदेवने कहा है कि जिनको इस संसारके परिभ्रमणसे कुछ भो भय है उनको कन्दमूल आदिके त्याग करने में हो अपनो सम्यक् और उत्तम बुद्धि लगानी चाहिये ।।८९॥ श्रावकोंको जिस प्रकार कन्दमूलका त्याग कर देना चाहिए उसी प्रकार और भी जो-जो साधारण हों उन सबका त्याग कर देना चाहिये तथा जिन पदार्थों में त्रस जीव रहते हों उनका विशेष रीतिसे त्याग करना चाहिये और जिनमें त्रसजीव भी रहते हों तथा जो साधारण भी हों, अनन्त जीवोंका आश्रय भी हों ऐसे पदार्थोंकी तो बात ही क्या है ? अर्थात् ऐसे पदार्थोंका तो अवश्य ही त्याग कर देना चाहिये ।।९०॥ किसी वृक्षकी जड़ साधारण होती है, किसीका स्कन्ध साधारण होता है, किसीकी शाखाएँ साधारण होती हैं, किसीके पत्ते साधारण होते हैं, किसीके फूल साधारण होते हैं, किसीके पर्व (गांठ) साधारण होते हैं, किसीका दूध साधारण होता है चोर किसीके फल साधारण होते हैं। इस प्रकार उनका साधारणपना आगमसे जान लेना चाहिये ॥९१।। इनमेंसे किसो-किसीके तो मूल पत्त स्कन्ध फल-फूल आदि अलग-अलग साधारण होते हैं और किसी-किसीके मिले हुए पूर्णरूपसे साधारण होते हैं परन्तु ये सब प्राणियोंके लिये पापके कारण होते हैं। इनके भक्षण करनेसे या अन्य किसी काममें लाकर विराधना करनेसे महापाप लगता है इसलिये इन सबको अच्छी तरह जानकर सबका त्याग कर देना चाहिये ॥१२॥ मूली, अदरक, आल, अरबी, रतालू, जमीकन्द आदि सब मूल साधारण कहलाते हैं । अर्थात् इनकी जड़ें सब साधारण हैं। तथा ये सब अनन्तकाय हैं। इनके भक्षण करनेसे तथा किसी प्रकारसे भी काममें लानेसे महापाप उत्पन्न होता है । इसलिये व्रती गृहस्थोंको इनका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये ॥१३॥ गंडोरक एक प्रकारके कड़वे जमीकन्दको कहते हैं। उसके स्कन्ध भी साधारण होते हैं, पत्ते भी साधारण होते हैं, दूध भी साधारण होता है और पवं (गांठे) भी साधारण होते हैं। इस प्रकार उसके चारों अवयव साधारण होते हैं। दूधोंमें आकका दूध साधारण होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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