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________________ २४ ३२४ ३२५ ३२७ ३२९ ३३.. ३३१ ३३२ ३३३ ३३५ ३३७ ३३७ ३३८ ३३९ ३४० ३४१ श्रावकाचार-संग्रह सम्यक्त्वके संवेग, निर्वेद आदि आठ गुणोंका स्वरूप-वर्णन सम्यक्त्वके पच्चीस दोषोंका वर्णन सम्यक्त्वकी महिमाका वर्णन सम्यग्ज्ञानकी उपासनाका उपदेश और उसका स्वरूप चारों अनुयोगोंका स्वरूप सम्यक् चारित्रकी आराधनाका उपदेश अष्ट मूलगुणोंका वर्णन मद्यपानके दोषोंका वर्णन मांस-भक्षणके दोषोंका वर्णन मधु-सेवनके दोषोंका वर्णन नवनीत-भक्षणके दोषोंका वर्णन क्षीरी वृक्षोंके फल-भक्षणके दोषोंका निरूपण भक्ष्याभक्ष्य का विचार न करके सर्व भक्षण करनेवाला व्यक्ति राक्षस है चर्मपात्र-गत तेल, घृतादिके खानेका निषेध प्राणोका अंग होनेपर भी मांस अभक्ष्य है, किन्तु अन्न, फलादि भक्ष्य हैं अज्ञात फल, अशोधित शाक-पत्रादि, द्विदल अन्न आदिके त्यागका उपदेश रात्रि-भोजनके दोष बताकर उसके त्यागका उपदेश श्रावकके बारह व्रतोंका नाम-निर्देश अहिंसाणुव्रतका वर्णन दयाकी महिमाका वर्णन हिंसा पापके फलका और अहिंसाणुव्रतके अतीचारोंका वर्णन हिंसाका विस्तृत विवेचन सत्याणुव्रतका विस्तृत वर्णन सत्याणुव्रतके अतीचारोंका वर्णन अचौर्याणुव्रतका विस्तृत विवेचन अचौर्याणुव्रतके अतीचारोंका वर्णन ब्रह्मचर्याणुव्रतका विस्तृत विवेचन मैथुन-सेवन-जनित हिंसाका वर्णन ब्रह्मचर्याणुवतके अतीचारोंका निरूपण परिग्रहपरिमाणाणुव्रतका विस्तृत विवेचन परिग्रहपरिमाणाणुव्रतके अतीचारोंका वर्णन दिग्वत गुणव्रतका स्वरूप और उसके अतीचारोंका निरूपण अनर्थदण्डविरतिगुणव्रतका सभेद विस्तृत वर्णन । भोगोपभोगसंख्यानगुणवतका विस्तृत विवेचन और उसके अतीचारोंका निरूपण देशावकाशिकशिक्षाव्रतका स्वरूप और अतीचारोंका निरूपण सामायिक शिक्षव्रतका वर्णन ३४४ ३४६ ३४८ ३५० ३५२ ३५४ ३५७ ३५९ ३६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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