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श्रावकाचार-संग्रह तृतीय भागकी
विषय-सूची
पृष्ठ-संख्या
१७. लाटीसंहिता
१-१५१
धर्मका स्वरूप और व्रतका लक्षण श्रावकोंकी तिरेपन क्रियाओंका वर्णन दर्शनिक श्रावकका स्वरूप दर्शनिक श्रावकको अष्टमूलगुण धारण करनेका उपदेश तथा
चर्मपात्रगत घृत तैल आदिके त्यागनेका विधान खाद्य स्वाद्य आदि भक्ष्य पदार्थोंको शोधकर खानेका उपदेश साग-भाजी आदिके ग्रहण करनेका निषेध रात्रि-भोजन-त्यागका विधान दही छाछ आदिके मर्यादासे बाहिर न खानेका विधान मदिरा, भांग, अफीम आदिके सेवनका निषेध मधु-त्यागका उपदेश उदुम्बर फलोंके त्यागका उपदेश कंदमूल आदि साधारण वनस्पति भक्षणका निषेध सप्त व्यसन त्यागका उपदेश सम्यक्त्वकी दुर्लभता और महत्ताका वर्णन सम्यग्दर्शनका स्वरूप और उसके निश्चय तथा व्यवहार सम्यक्त्वीके प्रशम संवेग आदि गुणोंका सयुक्तिक वर्णन भक्ति वात्सल्य आदि गुणोंका विशद निरूपण कुलाचार क्रियाका व्रत रूपसे पालन करनेपर ही पंचम
गुण स्थानवर्ती दार्शनिक संज्ञा होती है, अन्यथा नहीं सम्यग्दर्शनके आठ अंगोंका विस्तृत वर्णन निःशंकित अंगका विस्तृत विवेचन सप्त भयों का वर्णन निःकांक्षित अंगका वर्णन निर्विचिकित्सा अंगका वर्णन अमूढ दृष्टि अंगका वर्णन सत्यार्थ देवका स्वरूप निरूपण सत्यार्थ गुरुका निरूणा
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