SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 533
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०० धारकाचार-संग्रह नित्यं भव्यैविशुद्धः सकलगुणनिधेः प्रापिहेतुं च मत्वा युक्त्या संसेवितोऽसौ दिशतु शुभतमं मङ्गलं सज्जनानाम् ॥२० लेखकानां वाचकानां पाठकानां तथैव च । पालकानां सुखं कुर्यानित्यं शास्त्रमिदं शुभम् ॥२१ इति श्री धर्मोपदेश पीयूषवर्षनामश्रावकाचारे भट्टारकश्रीमल्लिभूषणशिष्यब्रह्मनेमिदत्त विरचिते सल्लेखनाक्रमव्यावर्णन्ते नाम पञ्चमोऽधिकारः ॥५॥ से अतिसुखकारी इस श्रावकाचार शास्त्रको बनाया। इसे सर्व गुणनिधियोंकी प्राप्तिका कारण मानकर विशुद्ध बुद्धिवाले भव्य जन नित्य हो युक्तिके साथ इसकी सम्यक् सेवा आराधना करें और यह सज्जनोंको परम शुभ मंगल प्रदान करें ॥२०॥ यह शुभ शास्त्र लेखक, वाचक, पाठक और पालक (रक्षक) जनोंके नित्य ही सुख प्रदान करें ॥२१॥ इस प्रकार भट्टारक श्रीमल्लिभूषणके शिष्य ब्रह्मनेमिदत्त-विरचित धर्मोपदेशपीयूषवर्षनामकश्रावकाचारमें सल्लेखनाके क्रमका वर्णन करनेवाला पांचवां अधिकार समाप्त हुआ ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy