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. श्रावकाचार-संग्रह तद्धक्षिणो वृथा स्नानं धोतवस्त्रादिकं वृथा। यथा काक-वकादीनां नद्यां स्नानं न शुद्धये ॥२४ येषां कुले पलं नास्ति स्वप्ने चापि महाधियाम् । त एव भुवने भव्याः पवित्राः परमागमे ॥२५ तथा तद्-सतशुद्धयर्थं पविौर्भव्यदेहिभिः । चर्म-वारि-घृतं तैलं त्याज्यं हिंगु तदाश्रितम् ॥२६
उक्तं चचर्मस्थमम्भः स्नेहश्च हिंग्वसंहतचर्म च । सर्वच भोज्यं व्यापन्नं दोषः स्यादामिषवते ॥४ चर्मस्थिते घृते तैले तोये चाऽपि विशेषतः । रसोत्पन्नाः सदा जीवाः सम्भवेयुमंतं बुधैः ॥२७ यदुक्तम्- घृतेन तैलेन जलेन योगतो भवन्ति जीवाः किल चमंसंस्थिताः ।
रवीन्दुकान्तैरिव वह्निपुष्करे विदांवरैः केवलिभिस्त्वितीरितम् ॥५ तथा चोक्तम्चट्ठिय पोयइ जलई तामच्छउ दूरेण । बसणसुद्धि ण होइ तसु खखें घिय-तिल्लेण ॥६
तथा चोक्तम्शौचाय कर्मणे नेष्टं कथं स्नानादिहेतवे । चर्मवारि पिबन्नेष व्रती न जिनशासने ॥७
उक्तंचहिंगु घिय तेल सलिलं चम्मगयं वयजुदाण ण हु जुत्तं । सुहुमतसुप्पत्ति जदो मंसवए दूसणं जादो ॥८ इत्यादिसूरिभिः प्रोक्तं निधाय निजमानसे । मांसवतसुरक्षार्थ चर्मतोयादिकं त्यजेत् ॥२८ ॥२३।। उस मांस-भक्षी पुरुषका स्नान करना और धुले वस्त्रादिक धारण करना वैसे ही वृथा है, जैसे कि काक और वक आदि मांस-भक्षी जीवोंका नदीमें स्नान करना शुद्धिके लिए नहीं होता है ॥२४|| जिन महाबुद्धिशालियोंके कुलमें मांस स्वप्नमें भी नहीं आया है, वे ही भव्य पुरुष संसारमें पवित्र हैं, ऐसा परमागममें कहा है ॥२५।। तथा मांस-भक्षण त्याग व्रतकी शुद्धिके लिए पवित्र भव्य जीवोंको चर्ममें रखा हुआ जल, घृत, तैल और चर्माश्रित हींग भी तजना चाहिये।।२६॥
जैसा कि कहा है-चर्ममें रखा जल, तैल, घो, गीले चर्ममें रखा हींग और स्वाद-चलित सर्व प्रकारका भोजन खाना मांस त्याग व्रतमें दोष-कारक है ॥४॥
चर्ममें रखे घृतमें, तैलमें और विशेषकर जलमें रसज जीव सदा उत्पन्न होते रहते हैं, ऐसा ज्ञानियोंने माना है ।।२७॥
और भी कहा है-घृतसे, तैलसे और जलके योगसे चर्ममें संस्थित जीव निश्चयसे होते हैं। जैसे कि सूर्यकान्तमणिके योगसे अग्नि और चन्द्रकान्तमणिके योगसे जल उत्पन्न होता है । ऐसा विदांवर केवलियोंने कहा है ।।५।। और भी कहा है-मांसका खाना तो दूर हो रहे, किन्तु जो चर्म में रखे हुए जलको भी पीता है, उसके सम्यग्दर्शनकी शुद्धि नहीं है। इसी प्रकार चर्ममें रखे घी और तेलके खानेवालेके भी सम्यग्दर्शनको शुद्धि नहीं है ॥६॥ और भी कहा है-चर्ममें रखा जल तो शौच कर्मके लिए भी इष्ट नहीं माना गया है, फिर स्नान आदिके लिए तो वह कैसे इष्ट हो सकता है ? चर्ममें रखे जलको पोनेवाला पुरुष व्रती नहीं हो सकता, ऐसा जिनशासनमें कहा गया है ॥७॥ और भी कहा है-चर्म-गत होंग, घी, तेल और जल व्रतयुक्त पुरुषोंके ग्रहण करनेके योग्य नहीं हैं, क्योंकि उनमें सूक्ष्म त्रस जीवोंकी उत्पत्ति होती रहती है। इसलिये चर्मस्थ जलादिका उपयोग करनेपर मांस त्याग व्रतमें दूषण उत्पन्न करता है ॥८॥
इत्यादिक पूर्वाचार्योंके कहे वचनोंको अपने मनमें रखकर मांस-भक्षण त्याग व्रतकी सुरक्षा
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