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श्रावकाचार-संग्रह बुधजनपरिसेव्यं तीर्थनाथैः प्रणीतं, विमलगुणनिधानं स्वर्गसंदानदक्षम् । अमलसुखसमुद्रं दानपूजादियुक्तं, भज विगतविकारं त्वं च सागारधर्मम् ॥ इति श्रीभट्टारकसकलकीतिविरचिते प्रश्नोत्तरोपासकाचारे संक्षेपव्रतप्ररूपको नाम
प्रथमः परिच्छेदः ॥१॥
हैं ।।४९|| जिसमें दान देना और श्री जिनेंद्रदेवकी पूजा करना ही मुख्य है और जो संसारके समस्त विकारोंसे रहित है ऐसे इस श्रावकाचार धर्मको बुद्धिमान लोग पालन करते हैं। श्री तीर्थंकर परमदेवने इसका निरूपण किया है। यह अनेक निर्मल गुणोंका निधि है, स्वर्गोंके सुख देने में चतुर है और निर्मल सुखका समुद्र है ऐसे इस श्रावकाचार धर्मको हे भव्य ! तू पालन कर ॥५०॥
इस प्रकार आचार्य श्री सकलकोतिविरचित प्रश्नोत्तरश्रावकाचारमें संक्षेपसे
व्रतोंको निरूपण करनेवाला यह प्रथम परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१॥
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