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पूजकका स्वरूप
स्नान करके ही पूजन करे और स्नानके योग्य प्रासुक जलका वर्णन पूजाको अष्ट द्रव्योंसे करनेका विधान
पूजनमें सावद्य की अल्पता और पुण्य प्राप्तिकी बहुलताका निर्देश जिन - बिम्ब और जिनालय बनवानेका उपदेश पूजनके नाम, स्थापनादि छह प्रकारोंका वर्णन वर्तमानकालमें असद्भाव स्थापना - पूजनका निषेध द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावपूजनका वर्णन
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पंचपरमेष्ठीका स्तवन, जपन और गुण-चिन्तन भाव पूजन है। पूजन के फलका वर्णन करते हुए मेंढकके देव होनेकी कथाका वर्णन पूजक और पूजकाचार्यका स्वरूप
स्वदोष पूजक और पूजकाचार्यसे कराई गई प्रतिष्ठा देशादिकी विनाशक होती है।
सभी वर्णवालोंको अपने पदानुसार धर्मकार्य करनेका विधान न्यायोपार्जित अल्प भी धनका दान बहुफलका दायक होता है.
तप और दानका वर्णन
कीत्तिके उपार्जनार्थ दान देनेकी प्रेरणा
अभयदानकी महत्ताका वर्णन
समदत्तिका वर्णन
स्वाध्यायकी महत्ता बतलाकर उसके करनेकी प्रेरणा
संयम पालन करनेका उपदेश
ब्राह्मणादि चारों वर्णोंके कर्तव्योंका निर्देश
भ० ॠषभनेव द्वारा युगके आदिमें कर्मभूमिको व्यवस्थाका विशद वर्णन सूतक-पात वर्णन
रजस्वला स्त्रीके कर्तव्य
क्षुल्लक आदि साधुके अपवाद लिंग है।
अट्ठाईस गुण धारक दिगम्बर वेष ही साधुका उत्सर्ग लिंग है साधुके ऋषि, यति, मुनि और भिक्षुक भेदोंका स्वरूप जिन वेषरूप उत्सर्ग लिंगसे ही मोक्ष प्राप्तिका उल्लेख सप्तम अधिकार
सल्लेखनाको धारण करनेवाला ही साधक कहलाता है साधकको संसार, शरीर और भोगोंकी विनश्वरताका चिन्तन करते हुए जिनरूप धारण करना ही श्रेष्ठ है
निमित्तादिसे अल्प आयुके ज्ञात होनेपर, उपसर्ग असाध्य रोग आदिकी दशामें समाधिमरण करनेका उपदेश
काय और कषायोंके कृश करते हुए समाधिमरणका विस्तृत वर्णन
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