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________________ ८२ श्रावकाचार-संग्रह मन्त्रः परमराजादिर्मतोऽयं परमेष्ठिनाम् । पर्व मन्त्रमितो वक्ष्ये यथाऽऽह परमा श्रुतिः ।। ६३ तत्रादी सत्यजाताय नमः पदमुदीरयेत् । वाच्यं ततोऽर्हज्जाताय नमः इत्युत्तरं पदम् ।। ६४ ततः परमजाताय नमः पदमुदाहरेत् । परमार्हतशब्दच चतुर्थ्यन्तं नमः परम् ।। ६५ ततः परमरूपाय नमः परमतेजसे । नम इत्युभयं वाच्यं पदमध्यात्मशिभिः ।। ६६ परमादिगुणायेति पदं चान्यन्नमोयुतम् । परमस्थानशब्दश्च चतुर्थ्यन्तो नमोऽन्वितः ॥ ६७ उदाहार्य क्रम ज्ञात्वा तत: परमयोगिने । नमः परमभाग्याय नम इत्युभयं पदम् ॥ ६८ परौद्धपदं चान्यच्चतुयन्तं नमः परम् । स्यात्परमप्रसादाय नम इत्युत्तरं पदम् ६९ स्यात्परमकाक्षिताय नम इत्यत उत्तरम् । स्यात्परमविजयाय नम: इत्युत्तरं वचः ।। ७० स्यात्परमविज्ञानाय नमो वाक्तदनन्तरम् । स्यात्परमर्शनाय नमः पदमतः परम् ।। ७१ ततः परमवीर्याय पदं चास्मान्नमः परम् । परमादि सुखायेति पदमस्मादनन्तरम् ।। २ सर्वज्ञाय नमो वाक्यमर्हते नम इत्यपि । नमो नमः पदं चास्मात्स्यात्परं परमेष्ठिने ७३ यथा-'सम्यग्दष्टे सम्यग्दृष्ट, उग्रतेज उग्रतेजः, दिशांजय दिशांजय, नेमिविजय नेमिविजय स्वाहा' (हे सम्यग्दृष्टि, हे उग्रतेजोधारक, हे दिशाओंके जीतनेवाले,हे नेमिविजय, मैं तुम्हारे लिए हव्य समर्पण करता हूँ) । तत्पश्चात् पूर्वके समान ही तीन पदोंके द्वारा काम्यमंत्र बोले ॥६१-६२॥ इन परमराजादि मंत्रोंका संग्रह मूलमें दिया गया हैं। ये परमराजादि मंत्र माने गये हैं। अब आगे परमेष्ठियोंके अन्य मंत्र जिस प्रकारसे परमागममें कहे गये है,उसी प्रकारसे कहते हैं।।६३।। उनमेंसे सबके आदिमें 'सत्यजाताय नमः' (सत्यरूप जन्मवालेके लिए नमस्कार हो) यह पद बोले । तत्पश्चात 'अर्हज्जाताय नमः' (अर्हन्तके योग्य जन्म-धारकके लिए नमस्कार हो) यह पद कहे।।६४।। तदनन्तर 'परमजाताय नमः' (उत्तम जन्म लेनेवालेके लिए नमस्कार हो) यह पद बोले । पुनः चतुर्थीविभक्त्यन्त परमाहत शब्दके अन्तमें 'नमः'पद लगाकर 'परमार्हताय नमः' (परम आईतके लिए नमस्कार हो) यह मंत्र पढे ।।६५।। पुनः ‘परमरूपाय नमः' (उत्कृष्ट निर्ग्रन्थरूपके धारकको नमस्कार हो) और 'परमतेजसे नमः' (परम तेजस्वी देव को नमस्कार हो) ये दोनों मंत्रपद अध्यात्मदर्शी द्विजों को बोलना चाहिए ।।६६।। पुन: नमः शब्दके साथ परमगुणाय,अर्थात् ‘परमगुणाय नमः' (उत्तमगुणवालेके लिए नमस्कार हो) यह मंत्र कहे । तत्पश्चात् नमः पदके साथ चतुर्थीविभक्यन्त परमस्थान पद कहे, अर्थात् 'परमस्थानाय नमः' (मोक्षरूप परमस्थानके लिए नमस्कार हो) ।।६७॥ तदनन्तर मंत्रक्रम को जानकर 'परमयोगिने नमः' ( परमयोगीके लिए नमस्कार हो) और 'परमभाग्याय नमः' (परमभाग्यशाली तीर्थकर देवके लिए नमस्कार हो)इन दोनों मंत्रपदोंको बोले ॥६८।। पुन: चतुर्थीविभक्त्यन्त परद्धिपदके आगे नमः पद लगाकर परमर्द्धये नमः' (परमऋद्धि-धारकके लिए नमस्कार हो, और ‘परमप्रसादाय नमः' (उत्तमप्रसन्नताके धारकके लिए नमस्कार हो) ये दो मंत्र पढे ॥६९। पुनः 'परमकांक्षिताय नमः' (परम आनन्द की आकांक्षा वाले को नमस्कार हो) और 'परमविजयाय नमः' (कर्मशत्रुओं पर परम विजय पानेवालेके लिए नमस्कार हो) ये दो मंत्र बोले ॥७०॥तदनन्तर 'परमविज्ञानाय नमः' (परमविज्ञानशाली के लिए नमस्कार हो) और पुन: ‘परमदर्शनाय नमः' (अनन्त दर्शन गुणवालेके लिए नमस्कार हो) ये पद पढे ॥७१॥ तत्पश्चात् 'परमवीर्याय नमः' (अनन्तबलशालीके लिए नमस्कार हो) और तदनन्तर 'परम सुखाय नमः' परमसुखके धारकको नमस्कार हो) ये मंत्र कहे ॥७२॥ पुनः 'सर्वज्ञाय नमः' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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