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________________ क्षणिक एकांत में दूषण ] तृतीय भाग [ १३७ मतसिद्धिप्रसक्तेः । सुगतमतं हि न सर्वथा विनाशस्य निर्हेतुकत्वम् । किं तर्हि ? कार्यजनकहेतुव्यतिरिक्तहेत्वनपेक्षत्वमिति वादावसानं स्यात् । विनाशतद्वतोविशेषणविशेष्यभावः संबन्ध इत्यपि मिथ्याभिधानं परस्परमसंबद्धयोस्तदनुपलब्धः । प्रागभावत' द्वतोविशेषणविशेष्यभावोनेनैव निरस्तः । कार्यकारणयोरस्येदं कार्यमिति विशेषणविशेष्यभावः कथमित्यपि न चोद्यं, तत्र तद्व्यवहारस्य कार्यकारणभावनिबन्धनत्वात्, तद्ध्यतिरेकेण भिन्नयोविशेषणविशेष्यभावासंभवात् । ततोनान्तर विनाशः कारणैः क्रियते इति पक्षान्तरमपि न सम्यक्, क्षण है. विनाश कपाल रूप कार्य को उत्पन्न करने वाले घट हेतु से हुआ है अतः उस घट की अपेक्षा से सहित है मतलब कपाल लक्षण कार्य उत्तरक्षण है उसको उत्पन्न करने वाला देत समनंतर उससे भिन्न हेतु मुद्गर आदि हेतुओं को अपेक्षा नहीं रखता है किन्तु घट की अपेक्षा रखता है । नैयायिक-विनाश और विनाशवान् में विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध है । बौद्ध-यह कथन भी मिथ्या ही है। क्योंकि परस्पर में वह विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध उपलब्ध नहीं होता है । "प्रागभाव और प्रागभाववान में विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध है" इस कथन का भी उपर्युक्त कथन से खण्डन कर दिया गया है। तथा “कार्य-कारणभाव में यह इसका कार्य है" इस प्रकार का विशेषण-विशेष्यभाव कैसे होता है ? इस प्रकार से भी शंका नहीं करनी चाहिये । क्योंकि वहाँ काय कारणभाव में जो विशेषण-विशेष्यभाव लक्षण व्यवहार होता है । वह कार्य कारण भाव के निमित्त से होता है। क्योंकि परस्पर सम्बन्धित कार्य कारणभाव के बिना भिन्न दो पदार्थों में विशेषण-विशेष्यभाव असम्भव ही है। इसलिये 'घट का विनाश मुद्गर-आदि कारणों के द्वारा उस घट से अभिन्न ही किया जाता है।" यह ( योगाभिमत) दूसरा पक्ष भी सम्यक नहीं है। क्योंकि यदि अपने कारण रूप मत्पिडादि से उत्पन्न हुआ-विनाश घटात्मक-घट से अभिन्न ही माना जायेगा तब तो सभी भिन्न कारण व्यर्थ ही हो जायेंगे। अन्यथा परापर कारणों की उपरति ही नहीं हो सकेगी। इसलिये सभी पदार्थ विनाश स्वभाव वाले हैं क्योकि वे विनाश के प्रति अन्य की अपेक्षा नहीं रखते हैं यह बात सिद्ध हो गई है। भावार्थ - यहाँ बौद्ध विनाश को निर्हेतुक सिद्ध कर रहा है। उसका कहना है कि घट के विनाश में मुद्गर हेतु नहीं है किन्तु यह विनाश उस घट का स्वभाव है एवं घट के फूटने पर उत्पन्न हुये कपालों को वह मुद्गर हेतुक कहता है । इसलिये उसने विनाश घट से भिन्न है या अभिन्न ? ऐसे 1 विनाशविनाशवतो: संबंधरहितयोः विशेषणविशेष्यभावो न दश्यते यतः । दि० प्र०। 2 उत्पत्ते प्राक । दि० प्र० । 3 विनाशस्य प्रागभावो घटः । दि० प्र० । 4 तद्वान विनाश । दि० प्र० । 5 संबद्धयोरेव विशेषणविशेष्यभावो यदि तदा । दि० प्र०। 6 यौगो वदति उपादानोपादेययोः विशेषणविशेष्यभावोऽस्तीति चेत् न अयमपि भाव: अनेनैव विनाशविनाशवतोः विशेषणविशेष्यभावसंबन्धनिराकरणेन निराकृतः। दि० प्र०। 7 कार्यकारणरहितेन भिन्नयोः कार्यकारणयोः विशेषणविशेष्यभावो न संभवति । दि० प्र० । 8 तादात्म्य । दि० प्र०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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