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________________ ४१२ ] अष्टसहस्री 'एकाने कविकल्पादावुत्तरत्रापि योजयेत् । प्रक्रियां भंगिनोमेमां' 'नयैर्नयविशारदः ॥२३॥ 5 स्यादेकमेव स्यादनेकमेवेति विकल्प आदिर्यस्य स एकानेकविकल्पादि : ' । तस्मिन्नुत्तरत्रापि स्याद्वादविशेषविचारेपि प्रक्रियामेनामन्वादिष्टां भङ्गिनीं सप्तभङ्गाश्रयां नयैर्यथोचितस्वरूपैर्योजयेत् — युक्तां प्रतिपादयेन्नयविशारदः स्याद्वादी, ततोन्यस्य तद्योजनेनधिकारात् । तद्यथा । [ कारिका २३ | एकानेकादी सप्तभंगी ब्रुवन्तो जैनाचार्याः प्रथमभगं सयुक्तिकं स्पष्टयंति ] स्यादेकं सद्द्रव्यनयापेक्षया । न हि " सत्पर्यायनयापेक्षया सर्वथा वा सर्वमेकमेवेति युक्तं, प्रमाणविरोधात्" । ननु च सद्द्रव्यनयार्पणादपि जीवादिद्रव्यमेकैकश एवैकं सिध्येत्, न तु कारिकार्थ -नयों की योजना करने में कुशल स्याद्वादी को आगे इसी प्रकार से एक और अनेक आदि धर्मों में भी इस सप्तभंगी प्रक्रिया को द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नयों के अनुसार योजित कर लेना चाहिये ||२३|| " स्यात् एक हो, स्यात् अनेक ही" ये विकल्प हैं आदि में जिसके, उसे एकानेकविकल्पादि कहते हैं । उसमें आगे-आगे भी स्याद्वादविशेष के विचार में भी ( अथवा भंग-भंग में एकत्वानेकत्व विचार में भी या घटपटादि सभी पर्यायों में एकत्वानेकत्व का विचार करने पर भी ) अन्वादिष्ट - पुनर्निरूपित सप्तभंगाश्रय इस भंग प्रक्रिया को यथोचित स्वरूप वाले नयों के अनुसार नयों में विशारद स्याद्वादी को योजित कर लेना चाहिये - युक्तरूप से प्रतिपादित करना चाहिये क्योंकि नयकुशल स्याद्वादी के अतिरिक्त अन्य किसी को इस प्रक्रिया की योजना करने का अधिकार नहीं है । Jain Education International [ एक अनेक में सप्तभंगी को घटित करते हुये जैनाचार्य प्रथम भंग का सयुक्तिक स्पष्टीकरण करते हैं । ] तद्यथा - सद्रव्य नय की अपेक्षा से वस्तु स्यात् एक है। बौद्ध - सत्पर्याय नय की अपेक्षा से सर्वथा सभी वस्तुयें एक ही हैं । जैन - इस प्रकार का कथन युक्त नहीं है, क्योंकि प्रमाण से विरोध आता है । शंका – सद्द्रव्यनय - द्रव्यार्थिकनय की अर्पणा से भी जीवादि द्रव्य एक एकरूप से एक ही सिद्ध होंगे किन्तु नाना द्रव्य - छह द्रव्य सिद्ध नहीं हो सकेंगे, क्योंकि प्रतीति से विरोध आता है, उसमें ( ब्या० प्र० ) 4 यथोचितस्वरूपैः एकत्वे द्रव्यनयोऽनेकत्वे पर्यायनयः । ( दि० प्र०) 1 नित्यानित्य । जीवाजीवत्वमूर्त्तामूर्त्तत्वसत्त्वासत्त्वादी । (ब्या० प्र०) 2 सप्तभंगी । ( ब्या० प्र०) 3 सर्व पर्यायेषु । 5 विचारनिपुण: । ( ब्या० प्र०) 8 एकान्तवादिनः । ( दि० प्र०) 6 एकत्वे द्रव्यनयानेकत्वे पर्यायनयेत्यादि । ( दि० प्र० ) 7 सती । ( ब्या० प्र० ) 9 सदेव द्रव्यं तस्य ग्राहको नयः संग्रहः । ( व्या० प्र० ) 10 यसः । ( व्या० प्र० ) 11 प्रत्यक्षादि । ( ब्या० प्र० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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