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________________ शब्द के अमूर्तत्व का खंडन ] प्रथम परिच्छेद [ १६६ शब्दपरमाणूनां ताल्वादिजनितवचनप्रेरितानां विस्तारप्रसङ्ग इति चेन्न, गन्धपरमाणनामपि तत्प्रसङ्गात् । तेषां गन्धद्रव्यस्कन्धपरिणतत्वान्न वचन [पवन] प्रेरितानामपि विस्तारः शरवदिति चेत्तर्हि शब्दपरमाणूनामपि शब्दस्कन्धपरिणतत्वात्कुतो विस्तारप्रसङ्गः ? तत एव न विक्षेपो गन्धपरमाणुवत् तेषां बन्धविशेषात्स्कन्धपरिणामसिद्धेः । मूलद्रव्येण 'प्रतिघातस्तेषां स्यादिति चेन्न गन्धपरमाणूनामपि तदनुषङ्गात् । कुड्यादिनास्त्येव 'तत्प्रतिघात इति चेच्छब्दपरमाणुप्रतिघातोपि । मूर्तिमद्भिः शब्दपरमाणुभि: स्कन्धपरिणतः श्रोतृकर्णपूरणप्रसङ्ग इति चेन्न, गन्धपरमाणुभिरपि घ्राणपूरणप्रसङ्गात् स्कन्धपरिणामाविशेषात् । नन्वेकश्रोत्रप्रवेशाद्योग्यदेश नैयायिक -ताल्वादि से उत्पन्न हुई वायु से प्रेरित हुये शब्द परमाणुओं के विस्तार का प्रसंग प्राप्त हो सकता है। जैन- ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि पवन से प्रेरित गंधपरमाणुओं के भी विस्तार का प्रसंग प्राप्त हो सकेगा। नैयायिक-गंधद्रव्य-कस्तूरी आदि के स्कन्धरूप से परिणत हुये गंधपरमाणुओं का पवन से प्रेरित होने पर भी विस्तार का प्रसंग नहीं हो सकता है। जैसे पवन से प्रेरित होने पर भी बाण का विस्तार नहीं होता है। __ जैन-यदि ऐसी बात है तब तो शब्द परमाणु भी शब्दरूप स्कन्ध से परिणत हैं, अतः उनका भी विस्तार कैसे होगा? और उसी प्रकार से गंधपरमाणु के समान उन शब्द परमाणुओं का विक्षेप–बिखरना भी नहीं हो सकता है क्योंकि उनमें बन्धगुण-सघन संघातविशेष के होने से स्कन्धरूप परिणमन सिद्ध है। नैयायिक – मूर्तद्रव्य से उनका प्रतिघात हो सकता है। जैन-नहीं, गंधपरमाणुओं में भी वह प्रसंग प्राप्त होगा। अर्थात् गंधपरमाणुओं का भी मूर्तद्रव्य से विघात होने लगेगा। नैयायिक-भित्ति आदि से तो उन गंधपरमाणुओं का प्रतिघात देखा ही जाता है। जैन-ऐसा प्रतिघात तो शब्द परमाणुओं का भी देखा जाता है। नैयायिक-स्कन्धरूप से परिणत मूर्तिमान् शब्द परमाणुओं के द्वारा श्रोता का कान तो पूर्णतया भर जाने का प्रसंग प्राप्त होगा। जैन-नहीं, क्योंकि गंधपरमाणुओं से भी घ्राण-नाक के भर जाने का प्रसंग आ जावेगा क्योंकि स्कन्धपरिणाम तो दोनों में ही समान हैं। 1 पवन इति पा० । (दि० प्र०) 2 नैव प्रेरितानामपि इति पा० । (दि० प्र०) 3 पूर्वद्रव्येण इति पा० । (दि० प्र०), अन्यः। (दि० प्र०) 4 प्रतिस्खलनम् । (दि० प्र०) 5 शब्दपरमाणूनाम् । (दि० प्र०) 6 प्रतिघातः । (दि० प्र०) 7 गन्धपरमाणूनाम् । (दि० प्र०) 8 मीमांसकः । श्रोतुः पुरुषस्य । (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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