SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाव एकान्त का निरास ] प्रथम परिच्छेद [ ६५ भवेत् । 'बुद्धिव्यपदेशसुखादिकार्यमसिद्धं येन तस्य स्वभावाभेदेपि विविधकर्मता न 'शक्तिनाना' त्वं प्रसवविशेषात् ' । स चेद्व्यभिचारी, कुतस्तद्गतिः * ? तस्यापि शक्तिनानात्वोपगमान्न" बुध्द्यादिः प्रसवविशेषो 12 व्यभिचारीति चेन्न”, अनवस्थाप्रसङ्गात्, 9 " जैन - नर्तकी आदि क्षण में भी शक्तियाँ अनेक हैं क्योंकि उनका प्रसव - कार्य विशेष पाया जाता है । अर्थात् जिस समय एक नर्तकी नृत्य कर रही है उसमें स्वभाव से अभेद है । यह कथन असिद्ध है क्योंकि उस नर्तकी में अनेक शक्तियों का सद्भाव देखा जा रहा है तभी तो प्रेक्षक जनों के हृदयों में अनेक भावनायें उत्पन्न हो रही है । अतएव हमारा यह " कार्य नानात्व हेतु" ठीक ही है । अद्वैतवादी नहीं । वह हेतु व्यभिचारी है । जैन -- यदि आप इस हेतु को व्यभिचारी मानोगे तो शक्ति नानात्व का ज्ञान भी कैसे होगा ?" उस नर्तकी के एक क्षण में भी अनेक शक्तियों को स्वीकार करने पर बुद्धि आदिक कार्यविशेष व्यभिचारी नहीं हैं । सत्ताद्वैती - ऐसा नहीं, अन्यथा अनवस्था का प्रसंग आ जावेगा । नर्तकी आदि क्षण में नृत्य करते समय उसके एक क्षण में नानाशक्तियाँ हैं उनमें से एक शक्ति में भी बुद्धि सुख आदि कार्यनानात्व की कल्पना करने से उसमें भी नाना शक्तियों का प्रसंग प्राप्त होगा । पुनः उनमें से भी एक शक्ति में बुद्धि आदि कार्यनानात्व की कल्पना करने पर उस एक शक्ति में भी अनेक शक्तियों की कल्पना करनी पड़ेगी । इस अनवस्था के प्रकार से बहुत दूर भी जाकर के बुद्धि आदि कार्यविशेष के सद्भाव 1 युगपदेकार्थे नर्तक्यादावुपनिबद्धदृष्टीनां पुरुषाणां सम्बन्धी विषयक्षण (बौद्धं प्रति ) एक एव नानाकार्यकारी यथा । 2 श्लाघनादिवचन | करणाङ्गहारादिः । ( दि० प्र० ) 3 नर्तक्यादिक्षणस्य । 4 ननु नर्तक्या दिक्षणस्य स्वभावाभेदोऽसिद्धः, शक्तिनानात्वस्य सद्भावात् । अतः कार्यनानात्वसाधनं कथं व्यभिचारीत्युक्ते आह सत्ताद्वैती । 5 नर्तक्यावेकार्थे । 6 प्रसवः, कार्यम् । 7 ( प्रसवविशेषः ) । 8 व्यभिचारित्वे प्रसवविशेषस्य कुतस्तस्य शक्तिनानात्वस्य गतिः सिद्धा । 9 प्रसवविशेषाद्वस्तुनानात्वमा सिधत् व्यभिचारसंभवात् । शक्तिनानात्वं तु ततो हेतोः सिद्धयत्येव निर्दोषत्वादित्याशंकायामाह । (दि० प्र०) 10 जैन: ( नर्तकीक्षणस्य ) । 11 सत्ताद्वैतवाद्याह । प्रसवविशेषोव्यभिचारी = वस्तुनानात्ववाद्याह । एवं न । = - सत्ताद्वैतवाद्याह । तस्य प्रसवविशेषस्य कुतो गतिः । = वस्तुनानात्ववाद्याह । तस्यापि प्रसवविशेषस्यापि शक्तिर्नानात्वोपगमात् गतिरस्तीत्यतः बुद्धयादिः प्रसवविशेषोऽव्यभिचारीति चेत् । =सत्ताद्वैतवाद्याह । एवं न । कुतः । अनवस्थाप्रसंगात् । कथमनवस्था इत्युक्त आह । एकस्मिन् नर्तकीक्षणे नानाशक्तय: एकस्यामेकस्यां शक्तो बुद्धयादिकार्यमानात्वं तस्मात् शक्तिनानात्वं प्रसजति । तथा बुद्धयादिकार्यत्वेपि नानाशक्तयः । तत्राप्येकस्यामेकस्यां बुद्ध्यादिकार्यनानात्वात् शक्तिनानात्वं प्रसजति इत्यनवस्थापादनम् । एवं सुदूरमपि गत्वाऽनवस्थादोषपरिहारमिच्छता वस्तुनो नानात्ववादिना एकस्मिन्नर्तक्यादिक्षणे बुद्धयादिप्रसवविशेषसद्भावेऽपि शक्तिनानात्वाभावः प्रथमत एवाभ्युपगन्तव्यः । एवं शक्तिनानात्वाऽभावस्यांगीकारे कृते सति असो बुद्धयादिकार्यनानात्वादितिहेतुः कथं न व्यभिचारी अपितु व्यभिचार्येव इति कुतो वस्तुनानात्वगतिः । न कुतोऽपि । ( दि० प्र० ) 12 नर्तक्यादिक्षणेन । 13 सत्ताद्वैती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy