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________________ अष्टसहस्री [ कारिका : प्रत्यक्षस्य सकलकल्पनाविषयत्वात्स्मृत्यपेक्षायामनवस्थाप्रसङ्गात्', स्मृतेः पूर्वानुभवापेक्षत्वात्पूर्वानुभवस्याप्यपरस्मृत्यपेक्षत्वात्', सुदूरमपि गत्वा "कस्यचिदनुभवस्य स्मृतिनिरपेक्षत्वे 'प्रकृतानुभवस्यापि स्मृतिसापेक्षत्वकल्पनावैयर्थ्यात् । न च स्मृतिः 'पूर्वानुभूतार्थविषया कथञ्चिदप्यपूर्वार्थे11 ज्ञानमुपजनयितुमलं, 12तस्यास्तत्प्रत्यभिज्ञान मात्रजननसामर्थ्यप्रतीतेईष्टे15 सजातीयार्थेपि स्मृतेः 16सादृश्यप्रत्यभिज्ञानजनकत्वसिद्धेः । पूर्वानुभूते घटे स्मृतिस्ततो विजातीयेर्थान्तरे17 18तदभावे 1'विज्ञानमुपजनयतीति शिलाप्लवं कः श्रद्दधीतान्यत्र पूर्व के अनुभव किये गये सुख के साधनभूत पदार्थों का स्मरण करके "यह स्त्री-पुत्र आदि सुख के कारण हैं' इस प्रकार का ज्ञान उत्पन्न होता है वह "भावग्राही प्रत्यक्षज्ञान" स्मृति सापेक्ष कहलाता हैं और कहीं शुद्धभूतलादि में घट के अभाव का स्मरण करके ही अभाव प्रत्यक्ष होता है अतः स्मृति सापेक्ष है। ब्रह्माद्वैतवादी-यह कथन ठीक नहीं है। क्योंकि स्मरण की अपेक्षा रखने वाले विकल्पज्ञान में प्रत्यक्षपने का विरोध है। जैसे अनुमानादि ज्ञान स्मृति की अपेक्षा नहीं रखते हैं अतः प्रत्यक्ष नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि प्रत्यक्षप्रमाण सकल कल्पना के विषय से रहित है । अर्थात् निर्विकल्पज्ञान है। फिर भी उसमें यदि स्मृति की अपेक्षा स्वीकार करोगे तब तो अनवस्था का प्रसंग प्राप्त होगा क्योंकि स्मृति पूर्व के अनुभव की अपेक्षा रखती है और पुनः पूर्व का अनुभव अपर स्मृति की अपेक्षा रखता है। अतएव बहुत दूर जाकर भी किसी न किसी अनुभव को स्मृति से निरपेक्ष अन्तिम अनुभव मानने पर प्रकृत अनुभव के लिये भी स्मृति सापेक्ष कल्पित करना व्यर्थ ही है। यौग-पूर्व के अनुभूत पदार्थ को विषय करने वाली स्मृति कथञ्चित् भी अपूर्वार्थ (अभावरूप पदार्थ) के विषय में ज्ञान को उत्पन्न करने में समर्थ नहीं है, यदि ऐसा कहो तो ठीक नहीं है । वह स्मति उस अपर्वार्थ-अभाव पदार्थ में प्रत्यभिज्ञानमात्र को उत्पन्न करने में समर्थ है, किन्तु प्रत्यक्ष को उत्पन्न करने में समर्थ नहीं है । क्योंकि देखे गये सजातीय पदार्थ में भी स्मृतिसादृश्यप्रत्यभिज्ञान को उत्पन्न करने में सिद्ध है। ब्रह्माद्वैत-पूर्वानुभूत घट में स्मृति हो और पुनः वह स्मृति विजातीय अर्थान्तर-घटरहित भूतल में जो कि विजातीय अर्थान्तरभूत है उस अभाव में विज्ञान को (घटाभाव प्रत्यक्ष को) उत्पन्न करे। इस प्रकार की मान्यता तो शिला को पानी में तैराने के समान जड़ात्मा योग के सिवाय और 1 इदं भवति, इदं न भवतीति। 2 विकलत्त्वात् इति पा० । (दि० प्र०) 3 च । (ब्या० प्र०) 4 अनवस्थामेव दर्शयति । 5 योगमतापेक्षया पूर्वानुभव: प्रत्यक्षरूपोस्ति यतः। 6 अन्त्यस्य । 7 घटाद्यभावग्राहकस्य। 8 यौगः । 9 घट: । (दि० प्र०) 10 दृष्टसजातीयोर्थो पूर्वार्थस्तत्र ज्ञानं जनयत्येव इत्याशङ्कायामाह । (दि० प्र०) 11 अभावे । 12 इति चेन्नेत्यध्याहार्यमत्र। 13 तत्, तस्मिन्नपूर्वार्थे। 14 न तु प्रत्यक्षजनकत्वसिद्धिस्ततः। 15 सर्वथा। (दि० प्र०) 16 पूर्वव्यक्त्यनुभवसमये तद्गतं सादृश्यमप्यनुभूयते एव । तत एव पूर्वार्थत्वमिति भावः । 17 घटरहिते भूतले। 18 विजातीयेन्तिरे। 19 (घटाभावप्रत्यक्षम्)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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