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________________ ८४ ] अष्टसहस्री । कारिका 'पन्हवीत * ? न तावत्प्रत्यक्षात, तस्य विधायकत्वनियमात्, विशेषप्रतिषेधे प्रवृत्त्ययोगात् । नाप्यनुमानादागमाद्वा, तस्यापि प्रतिषेधकत्वानिष्टे:, अन्यथा प्रत्यक्षस्यापि प्रतिषेधकत्वप्रसङ्गात्। स्वयं न कुतश्चित्प्रमाणादयं विशेषानपन्हुते। किं तर्हि ? तत्साधनव्यभिचारात् *। 11वस्तुविशेष साधनवादिना13 हि न 14कारणभेदस्तत्साधनं15 प्रयोक्तव्यं, 16तस्याभेदवादिनं प्रत्यसिद्धत्वात् नापि 17विरुद्धधर्माच्यासः1, तत एव । किं तहि ? 19संविजितने भी चेतन-अचेतन भेद विशेष हैं वे सब अविद्या के द्वारा ही उपकल्पित हैं, वास्तव में यह सारा विश्व सत्रूप मात्र ही है। जैन-यदि ऐसी बात है तब तो यह बतलाइये कि आप किस प्रमाण से विशेष भेदों का लोप करेंगे ? प्रत्यक्ष प्रमाण से तो आप कर नहीं सकते हैं क्योंकि वह प्रत्यक्ष विधायकमात्र है। अर्थात् वह प्रत्यक्ष केवल वस्तु के अस्तित्व को ही कहता है, वह किसी का निषेधक नहीं है । अतएव विशेष के प्रतिषेध में उसकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। तथैव अनुमान अथवा आगम से भी विशेष का अभाव सिद्ध नहीं है क्योंकि उनको भी आपने प्रतिषेधक नहीं माना है, किन्तु विधायक ही माना है । अन्यथा, प्रत्यक्ष भी प्रतिषेधक हो जावेगा क्योंकि वे अनुमान और आगम प्रत्यक्ष मूलक हैं। सत्ताद्वैतवादी-किसी भी प्रमाण से हम विशेषों-भेदों का अपन्हव नहीं करते हैं। जैन-तब कैसे करते हो ? सत्ताद्वैतवादी-जितने भी साधन (हेतु) भेदों को सिद्ध करने वाले हैं वे सब व्यभिचारी हैं। यथा वस्तुविशेषवादी बौद्ध के द्वारा भेद को सिद्ध करने के लिये कारणभेदरूप हेतु का प्रयोग करना भी उचित नहीं है क्योंकि हम अभेदवादी के प्रति वह असिद्ध है। अर्थात् बौद्ध सभी वस्तु को भिन्नभिन्न रूप से भेदरूप ही मानते हैं। यह मान्यता ब्रह्माद्वैतवादी के प्रति असिद्ध है । यदि "विरुद्धधर्माध्यास" रूप हेतु का प्रयोग करें तो भी हम लोगों के प्रति असिद्ध हैं। प्रश्न-फिर क्या सिद्ध है ? 1 ब्रह्माद्वैती। 2 निराकर्वीत । (दि० प्र०) 3 अस्तित्त्वप्रतिपादकः । (दि० प्र०) 4 आहुविधात प्रत्यक्षं न निषेद्ध विपश्चितः । नैकत्वे नागमस्तेन प्रत्यक्षेण प्रबाध्यते । 5 किन्तु विधायकत्वनियमात् । 6 अनुमानस्यागमस्य च प्रतिषेधानिष्टिनभवति चेत्तदा निर्विकल्पकप्रत्यक्षस्यापि प्रतिषेधकत्त्वं प्रसजति । (दि० प्र०) 7 प्रत्यक्षभूलत्वादनुमानागमयोः। 8 ब्रह्माद्वैती। 9 सत्ताद्वैतावलम्बी सांख्यः । (दि० प्र०) 10 तत्साधनं, विशेषसाधनम् । 11 (तत्साधनव्यभिचारमेव दर्शयति ब्रह्माद्वैती। तत्र कारणभेदस्तत्साधनं विरुद्धधर्माध्यासो वेति विकल्प्य क्रमेण दूषयति)। 12 घटपटादिभेदः । (दि० प्र०) 13 सौगतेन । 14 विषयिविशेषः । (दि० प्र०) 15 कारणभेदस्य । (दि० प्र०) 16 मृत्पिण्डत्त्वादि । (दि० प्र०) 17 घटपटादीनाम् । (ब्या० प्र०) 18 भेदसाधनम् । 19 ब्रह्माद्वैते एकमखण्डं ज्ञानं सौगतमते तु ज्ञानभेदोस्तीत्यनयोर्भेदं मनसि निधाय ब्रह्माद्वैती ते ज्ञानप्रतिभासेत्यादि। चेतनेतरभेदवेदिज्ञानाकार: संविनिर्भासः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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