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________________ ____७८ ] अष्टसहस्री [ कारिका [ इतरेतराभावाभावे सांख्यमते प्रकृतेः व्यक्ताव्यक्तभेदौ कथं भवेताम् ? ] तत्र' व्यक्ताव्यक्तयोस्तावदितरेतराभावस्यापह्नवे व्यक्तस्याव्यक्तात्मकत्वे सर्वात्मकत्वम् । तथा च "हेतुमदनित्यमव्यापि सक्रियमनेकमाश्रितं लिङ्गम् । सावयवं परतन्त्रं व्यक्तं विपरीतमव्यक्तम्"9 इति 10व्यक्ताव्यक्तलक्षणभेदकथनविरोधः । [ अत्यन्ताभावाभावे प्रकृतिपुरुषौ एकात्मको स्याताम् । ] प्रकृतिपुरुषयोरत्यन्ताभावनिह्नवे प्रकृतेः पुरुषात्मकत्वे सर्वात्मकत्वमेव । तथा च इस प्रकार इन 25 तत्त्वों को सांख्यों ने अस्तित्व रूप माना है नास्तित्वरूप नहीं । उनका सदैव अस्तित्व ही निश्चित करना भावकान्त है। उस भावैकान्त को स्वीकार करने पर सभी पदार्थों में इतरेतराभाव आदि अभावों का अपन्हव हो जावेगा और तब सभी पदार्थ सर्वात्मक, अनादि अनन्त आदिरूप हो जावेंगे । प्रकृति के दो भेद हैं एक व्यक्त जो घटादि कार्यरूप है दूसरा अव्यक्त प्रधान [ इतरेतराभाव न मानने से सांख्य के यहाँ प्रकृति के व्यक्त अव्यक्त भेद कैसे बनेंगे ? ] उसमें पहले व्यक्त और अव्यक्त में इतरेतराभाव का अपन्हव करने पर व्यक्त को अव्यक्तपना हो जाने से सर्वात्मक दोष आवेगा अर्थात् व्यक्त तो अव्यक्त बन जावेगा और अव्यक्त व्यक्त बन जावेगा। पुनः सभी वस्तु सबरूप हो जावेंगी। श्लोकार्थ -जो हेतुमान्, अनित्य, अव्यापि, सक्रिय अनेक प्रधानाश्रित, लिंग-प्रकृति को अनुमान से सिद्ध करने वाला अवयव सहित परतन्त्र (प्रधानाश्रित) है वह व्यक्त प्रधान है और उससे विपरीत लक्षणवाला अव्यक्त प्रधान है। इस प्रकार व्यक्त एवं अव्यक्त में लक्षणभेद होने से भेद है यह कथन विरुद्ध हो जावेगा, क्योंकि सभी सर्वात्मक रूप हो जाते हैं । [ अत्यन्ताभाव के अभाव में प्रकृति और पुरुष एकरूप हो जावेंगे ] तथा च प्रकृति और पुरुष में अत्यन्ताभाव को न मानने से प्रकृति पुरुषरूप हो जावेगी और पुरुष प्रकृतिरूप हो जावेगा । अतः सभी वस्तु को सर्वात्मकरूप हो जाने का ही दोष आ जावेगा। तथा च 1 एवञ्च सति (ब्या० प्र०) 2 महदादि घटादिच कार्य व्यक्तम्। प्रधानमव्यक्तम् । 3 कार्यरूपम् । (दि० प्र०) 4 प्रधानाश्रितम् । 5 प्रकृत्यनुमापकम् । 6 प्रधानाधीनम् । 7 एवंभूतं व्यक्तम् । 8 उक्तात् । (दि० प्र०) 9 प्रधानम्। 10 ग्रन्थविरोधात् । (ब्या० प्र०) 11 सर्वस्य सर्वात्मकत्वात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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