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पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी कृत हिन्दी टीका
का एक पृष्ठ नमूनार्थ
राधीन..
अ. पृ. २७५
२७१
- जैन - ऐसा नहीं करना , अनानादि से भी जानी गर यस्त में ( पदार्थ का ऐना ही स्वभाव है ' ऐसा उत्तर देना बिरू नहीं है क्योंकि प्रत्यक्ष के समान अनुमानादि को 4 हम प्रमाणभूत माल है । उप्तालये प्रमाण सिर परमाम से भव्य एवं अनव्यरूप प्रकृत में आये ये जीव ने, नानाव प्रतीत मा अनुसाण माते हुये तर्क , विषय नहीं है कि जिससे उनमें प्रश्न उठाया जा सके अर्थात स्वमान में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। अन्यथा तर्क के विषय भूत पदार्थों में 4 . आगम से विषयरूप से प्रश्न उठाने का प्रसंग मा जायेगा और उसी प्रकार से प्रत्यप्त के विषयभूत पदार्थों में भी प्रश्न उठते ही रहेंगे अर्धात यह आति उष्ण न्यो है तो यह जल ठंढा क्यों ? इत्यादि । पुनः उस्त प्रकार से तो प्रत्यक्ष और आगम स्वतंत्र तिबा नहीं हो सकेंग तर्क के समान |
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