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अष्टसहस्री
[ कारिका ६
__ 'पूर्वभवपरित्यागेन भवान्तरपरिग्रह एव च संसारः । इति प्रसिद्धेन प्रमाणेन संसारतत्त्वं न 'बाध्यते, 'नानुमानेन, 'नाप्यागमेन, तस्य तत्प्रतिपादकतया श्रुतेः “संसारिणस्त्रसस्थावराः" इति वचनात् ।
[ संसारस्य कारणभूततत्त्वानां का विचारः ] तथा संसारोपायतत्त्वमपि न प्रसिद्धेन बाध्यते, प्रत्यक्षस्य तदबाधकत्वात् । निर्हेतुकः संसारोऽनाद्यनन्तत्वादाकाशवदित्यनुमानेन तद्बाध्यते इति चेन्न, पर्यायार्थादेशात्संसारस्यानाद्यनन्तत्वासिद्धेः, दृष्टान्तस्यापि साध्यसाधनविकलत्वाद्, "द्रव्यार्थादेशात्तु तस्य तथासाधने सिद्धसाध्यतानुषक्तेः। 14सुखदुःखादि भावविवर्तन लक्षणस्य संसारस्य द्रव्यक्षेत्र
पूर्वभव का परित्याग करके भवांतर को ग्रहण करना ही संसार है। इस प्रकार प्रसिद्ध प्रत्यक्ष प्रमाण से संसार तत्त्व बाधित नहीं होता है तथा उपर्युक्त कथन की सिद्धि से अनुमान के द्वारा भी संसार तत्त्व बाधित नहीं है और न आगम से ही बाधित है क्योंकि आगम तो "संसारिणस्त्रसस्थावराः" इस प्रतिपादक रूप सूत्र से प्रसिद्ध ही है।
[ संसार के कारणभूत तत्त्वों का विचार ] तथा संसार के कारणभूत तत्त्व भी प्रसिद्ध प्रमाण से बाधित नहीं हैं क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण उन कारणों को सिद्ध करने में अबाधित रूप से पाया जाता है।
__ शंका-"संसार निर्हेतुक है क्योंकि वह अनादि अनंत है जैसे आकाश ।" इस अनुमान से संसार के कारण बाधित हैं।
समाधान-ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से संसार की अनादि अनंनता असिद्ध है । और "आकाशवत्" यह दृष्टांत भो साध्य साधन विकल है। यदि आप द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से कहें तो संसार अनादि अनंत ही है। अतः सिद्ध साध्यता का प्रसंग आता है और सुख दुःखादि भाव रूप परिणभन लक्षण वाला संसार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव रूप पाँच भेद विशेषों से सहेतुक ही प्रतीति में आ रहा है । अतः संसार को अहेतुक सिद्ध करने वाला आपका अनुमान निर्दोष नहीं है इसलिये संसार के कारण तत्त्वों का बाधक कोई भी अनुमान नहीं है तथा आगम भी उसका बाधक नहीं है क्योंकि आगम तो संसार के कारणों का साधक ही है । "मिथ्या
1 स्वोपात्तकर्मवशात् । (ब्या० प्र०) 2 प्रत्यक्षेण। 3 पूर्व चार्वाकोपन्यस्तेनानुपलब्धिलिंगजनितेन । (ब्या० प्र०) 4 अनपलब्धेरिति पूर्वोक्तचार्वाकानूमानेन । 5 प्रसिद्धप्रामाण्येन । (ब्या० प्र०) 6 श्रवणात् । (ब्या० प्र०) 7 उपायः, कारणम् । 8 काल । (ब्या० प्र०) 9 नरनारकादिकथनात् । (ब्या० प्र०) 10 पर्यायाथिकनयापेक्षया । 11 आत्म। (ब्या० प्र०) 12 संसारस्य। 13 नित्यत्वेन । 14 यसः । ता बहः । (ब्या०प्र०) 15 भावः परिणामः । 16 भावपरिवर्तन इति पा० । (ब्या० प्र०) 17 सुखदुःखादय एव भावाः परिणामास्तेषां विवर्तनं तदेव लक्षणं यस्य । 18 आत्म । (ब्या० प्र०)
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