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अष्टसहस्री
[ कारिका ३
नीन्तनप्रत्यक्षादिग्राह्यसजातीयार्थग्राहकं भवति तद्विजातीयसर्वज्ञाद्यर्थग्राहक वा न भवति, प्रत्यक्षादिप्रमाणत्वादत्रत्येदानीन्तनप्रत्यक्षादिप्रमाणवत् ।
[ अत्र जैनमतमाश्रित्य कश्चित् शंकते ] 'ननु च यथाभूतमिन्द्रियादिजनितं प्रत्यक्षादि सर्वज्ञाद्यर्थासाधकं दृष्टं तथाभूतमेव देशान्तरे कालान्तरे च तादृशं साध्यतेऽन्यथाभूतं वा ? तथाभूतं चेत् सिद्धसाधनम् । अन्यथा-- भूतं चेदप्रयोजको हि हेतुः जगतो बुद्धिमत्कारणकत्वे साध्ये सन्निवेशविशिष्टत्ववत् । इति चेत्तदसत्, तथाभूतस्यैव तथा साधनात् सिद्धसाधनस्याप्यभावात्, अन्यादृशप्रत्यक्षाद्यभावात् । तथा हि । विवादापन्न प्रत्यक्षादिप्रमाणमिन्द्रियादिसामग्रीविशेषानपेक्षं न भवति,
और काल-चतुर्थ कालादि (भिन्न देश, काल) में होने वाले प्रत्यक्षादि प्रमाण भी इस समय में होने वाले प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ग्रहण करने योग्य सजातीय अर्थ को ग्रहण करने वाले के सदृश ही होते हैं अथवा उससे विजातीय सर्वज्ञादि अर्थ के ग्राहक नहीं होते हैं, क्योंकि वे प्रत्यक्षादि प्रमाण हैं यहाँ पर आजकल होने वाले हम और आप जैसे प्रत्यक्षादि प्रमाणों के समान"। अर्थात् विवाद की कोटि में आये हए विदेहादि क्षेत्र एवं चतर्थ आदि काल में होने वाले जो प्रत्यक्ष, अनमान आदि प्रमाण हैं वे वैसे ही हैं जैसे कि आजकल के हम लोगों के प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाण हैं। अतः जैसे आजकल हम लोग प्रत्यक्षादि के द्वारा सर्वज्ञ को जान नहीं सकते हैं वैसे ही अन्यक्षेत्र और अन्यकाल में किसी भी प्रत्यक्षादि के द्वारा सर्वज्ञ का ज्ञान नहीं हो सकता है।
[ यहाँ जैनमत का आश्रय लेकर कोई शंका करता है ] जिस प्रकार इन्द्रियादि से उत्पन्न होने वाले प्रत्यक्षादि प्रमाण सर्वज्ञादि को साधक-सिद्ध करने वाले नहीं देखे जाते हैं । देशांतर और कालांतर में तथाभूत-उसी प्रकार के प्रत्यक्षादि प्रमाण को आप सिद्ध करते हैं या अन्यथाभूत प्रमाण को ?
__ यदि तथाभूत कहो तो सिद्ध साधन दोष ही है अर्थात् हम जैन भी हम और आप जैसे के प्रत्यक्षादि ज्ञान से सर्वज्ञ का ग्रहण नहीं मानते हैं ।
___ यदि अन्यथाभूत-अतींद्रिय प्रत्यक्ष कहो तो आपका हेतु अप्रयोजक (अहेतु) है जैसे जगत को
1 सिद्धान्त (जैन) पक्षमादाय वादी शङ्कते । 2 अतीन्द्रियजातं प्रत्यक्षम्। 3 बुद्धिमत्कारणत्वे इति पा० । (ब्या० प्र०) 4 यथाहि बुद्धिमत्पूर्वं जगदेतत्प्रसाधयेत्तथा बुद्धिमतो हेतोरनेकत्वं प्रसाधयेत् शरीरित्वात् । (ब्या० प्र०) 5 तथाभूतस्यैव तथा साधनत्वं कुत इत्यारेकायामाह। (ब्या० प्र०) 6 अतींद्रिय। (ब्या० प्र०) 7 प्रत्यक्षस्याप्यभावात् इति पा० । (ब्या० प्र०) 8 तथाभूतस्यैव तथासाधनत्वं कुत इत्यारेकायामाह ।
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