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सर्वज्ञ का ज्ञान असाधारण है ]
प्रथम परिच्छेद
[ २४५ संप्रतिपत्तेः ।* ये तावदेकं नित्यं प्रमाणं स्वभावभेदाभावाद्वदन्ति तेषां सर्वप्रमाणविनिवृत्तिः "येप्यनेकमनित्यं प्रतिक्षणं स्वभावभेदादाचक्षते तेषामपि, प्रत्यक्षादिप्रमाणानां नित्यकान्ता'च्चेत रेणव' प्रकारेण कथञ्चिन्नित्यानित्यात्मकत्वेन संप्रतिपत्तेः । ततो नैतेषां नित्यानित्यैकान्तप्रमाणवादिनां तीर्थकृत्समयानामाप्तता ।
[ आवरणरहितज्ञानवतः सर्वज्ञस्य वागादिव्यापारा असाधारणाः संति न तु साधारणाः ] किञ्च 10वागक्षबुद्धीच्छापुरुषत्वादिक1 12क्वचिदनाविलज्ञानं निराकरोति न पुनस्तप्रतिषेधवादिषु तथेति परमगहनमेतत् ।* तथाहि । तीर्थच्छेदसम्प्रदायास्तथैकान्तवा
इसलिये इन सभी में आप्तता नहीं है क्योंकि इन सभी के यहाँ सभी प्रमाणों की विनिवृत्ति (अभाव) हो जाती है पुनः अन्यथा-कथंचित् नित्यानित्यात्मक रूप से ही सिद्धि हो जावेगी।
जो नित्यकांतवादी सांख्य और ब्रह्माद्वैतवादी कहते हैं कि वस्तु में स्वभाव भेद का अभाव होने से एक नित्य ही प्रमाण है, उनके यहाँ भी सभी प्रमाणों का अभाव हो जाता है ।
और जो अनित्यवादी सौगत प्रतिक्षण स्वभाव के भेद से एक अनित्य प्रमाण को कहते हैं उनके यहाँ भी सभी प्रमाणों का अभाव हो जाता है क्योंकि प्रत्यक्षादि प्रमाणों का ज्ञान नित्यकांत और अनित्यैकांत से भिन्न ही कथंचित् प्रकार से कथंचित्-नित्यानित्यात्मक रूप से देखा जाता है । इसलिये इन नित्यानित्यकांत प्रमाणवादियों के तीर्थकृत-तीर्थविनाश संप्रदायों में आप्तता नहीं है ।
[ आवरण रहित ज्ञान वाले सर्वज्ञ के वचन आदि व्यापार असाधारण हैं, साधारण नहीं हैं ]
दूसरी बात यह है कि वचन, इन्द्रिय, बुद्धि, इच्छा पुरुषत्वादी किन्हीं-सुगत, कपिलादि एकांतवादियों में ही अनाविल-निरावरण ज्ञान का निराकरण करते हैं, किन्तु उनके प्रतिषेधवादियों-जैनों में उस प्रकार से निवारण ज्ञान का निषेध नहीं है इस प्रकार से यह समझना बहुत ही गहन है ।*
तथाहि-"तीर्थच्छेदसंप्रदाय वाले उस प्रकार से एकांतवादी ही हैं वे निरावरणज्ञानधारी नहीं हैं क्योंकि वे एकांतवादी अविशिष्ट वचन-सामान्य वचन इन्द्रियज्ञान, इच्छादिमान् हैं अथवा अविशिष्टसामान्य पुरुष आदि हैं जैसे रथ्या पुरुष"। इसलिये इन लोगों में आप्तता नहीं है।
1 नित्यवादिनः सांख्या: ब्रह्माद्वैतवादिनश्च । 2 ब्रह्मादेरुपादानकारणस्य नित्यत्वे एकत्वे चोपादेयस्यापि नित्यत्वमेकत्वं चेति भावः। 3 यूगपत्क्रमेण वा। 4 अनित्यवादिनः सौगताः। 5 सर्वप्रमाणविनिवृत्तिरिति सम्बन्धः । 6 नित्यकांतादनित्यकांताच्चैतरेणव इति पा०। (ब्या० प्र०) 7 सकाशात् । 8 चकारेणानित्यै कान्तग्रहणम् । 9 कथञ्चित्प्रकारेण । 10 मीमांसकेनाभिधीयमानस्य न क्वचिदनाविलज्ञानमिति दूषणस्य परिहारद्वारेणव परेषां सुगतादीनामाप्तता नास्ति परं त्वस्माकं त्वस्तीति वक्तकामा वागक्षेत्याद्याहराचार्याः । 11 कर्तृपदम् । 12 सुगतकपिलादावेकान्तवादिषु। 13 निर्दुष्टज्ञानं । (ब्या० प्र०) 14 जनेषु। 15 दुरवबोधम् । 16 सुगतादयः । (ब्या० प्र०)
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