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अष्टसहस्त्री
[ अधुनापर्यंत भावनावादी भाट्टो नियोगवादं सौगतमतं चाश्रित्य विधिवादमदूषयत् अतः प्रभृति स्वपक्षं भावनावादं पोषयति ]
स 2 एव
वाक्यार्थोस्त्वित्ययुक्तम् —— धात्वर्थवन्नियोगस्य
वाक्यार्थतया प्रतीत्यभावात् - 'सर्वत्र भावनाया' एव वाक्यार्थत्वप्रतीतेः । शब्दभावनार्थभावना च ।
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“शब्दात्मभावनामाहुरन्यामेव लिङादयः । 10 इयं 11 त्वन्यैव 12 सर्वार्था 13 सर्वाख्यातेषु 14 विद्यते " ॥ इति वचनात् । तत्र शब्दभावना" शब्दव्यापारः " । " शब्देन हि पुरुषव्यापारो "भाव्यते, पुरुषव्यापारेण "धात्वर्थो 20, धात्वर्थेन 21 फलमिति ।
[ कारिका ३
'परोपवणितस्वरूपस्य साहि द्विधा;
[ यहाँ तक भावनावादी भाट्ट ने नियोगवादी प्रभाकर के मत का अवलंबन लेकर एवं सौगत मत का भी आश्रय करके विधिवादी - वेदांती को दूषण दिया है अब स्वयं अपना पक्ष पुष्ट करता है । ]
प्रभाकर - अतः आपके ही कथनानुसार हमारे द्वारा मान्य वह नियोग ही वेदवाक्य का अर्थ हो जावे यही ठीक है । बाधा क्या है ?
भावनावादी भाट्ट - यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि धातु के अर्थ के समान आप प्रभाकर द्वारा वर्णित स्वरूप वाला नियोग ही वेदवाक्य का अर्थ है ऐसी प्रतीति नहीं आती है क्योंकि सर्वत्र - नियोग एवं विधि आदि के प्रतिपादक वैदिक एवं लौकिक वाक्यों में भावना ही वेदवाक्य का अर्थ प्रतीति में आ रहा है । उस भावना के दो भेद हैं- ( १ ) शब्दभावना (२) अर्थभावना । कहा भी हैश्लोकार्थ - लिङ् लोट् आदि लकार अर्थभावना से कहते हैं क्योंकि यह अर्थभावना सर्वार्थ - सभी लकारों के सभी आख्यातों में विद्यमान है ।
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भिन्न शब्दभावना और आत्मभावना को अर्थों का प्रतिपादन करने वाली है अतः
उसमें शब्दव्यापार को शब्दभावना कहते हैं "अग्निष्टोमेन" इत्यादि शब्द के द्वारा पुरुष का व्यापार उत्पन्न किया जाता है। पुरुष के व्यापार से धातु का अर्थ सिद्ध होता है तथा उस धातु के अर्थ से फल की सिद्धि होती है ।
1 नियोगः । प्राभाकरः । 2 अतः | 3 अत्र भावनावादी वदति । - इति नियोगवादिवचोऽयुक्तम् -- विधिवादवत्परोदितनियोगस्याप्यप्रमाणत्वात् । 4 सन्मात्रं धात्वर्थोत्र विधिः । 5 प्रभाकर । 6 नियोगविध्यादिस्वरूपप्रतिपाद के वैदिके लौकिके च वाक्ये | 7 तेन ( वाक्येन ) भूतिषु ( यागक्रियासु ) कर्तृत्वं प्रतिपन्नस्य वस्तुनः (द्रष्टव्यादे: ) । प्रयोजक क्रियामा भावनां भावनाविदः । 8 अर्थभावनातो भिन्नाम् । 9 लिङ्लोट्तव्याः कर्त्तारः । 10 अर्थभावना । करोति धात्वर्थ लक्षणा वक्ष्यमाणेयं सर्वार्थप्रतिपादिनी भावना अन्यापूर्वोक्तायाः शब्दभावनातो भिन्ना । कुतः ? सर्वाख्यातेषु विद्यमानत्वात् । 11 शब्दभावनातः । (ब्या० प्र० ) 12 सर्वोर्थो यजनादिर्यस्याः सा । 13 लिङ्गादिषु । ( ब्या० प्र० ) 14 यतः । (ब्या० प्र०) 15 उत्पादकत्वं पुरुषव्यापारस्य । ( ब्या० प्र० ) 16 प्रेरणात्परं । ( ब्या० प्र०) 17 अग्निष्टोमेत्यादिना । 18 उत्पाद्यते । 19 धात्वर्था इति पा० । ( ब्या० प्र० ) 20 यथा शब्दव्यापारः । 21 धात्वर्थस्य ।
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