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________________ ( १० ) शब्द, विद्युत, दीपक आदि भी कथंचित् नित्य हैं बुद्धि का सर्वथा विनाश होता है या नहीं ? अज्ञानादि दोषों की हानि कैसे होगी ? आत्मा के परिणाम कितने प्रकार के हैं ? मीमांसक दोषों को जीव का स्वभाव मानता है उसका निराकरण किसी जीव के संसार का सर्वथा अभाव हो जाता है जैनाचार्य इस बात को सिद्ध करते हैं मिथ्यादर्शन आदि का परमप्रकर्ष अभव्य जीवों में पाया जाता है ज्ञानादि गुण आत्मा के स्वभाव हैं किंतु दोष आत्मा के स्वभाव नहीं हैं दोष आवरण पर्वत के समान विशाल हैं। सर्वज्ञ के दोषावरण के अभाव का सारांश कर्म से रहित भी आत्मा अत्यंत परोक्ष पदार्थों को कैसे जानेगा ? सूक्ष्मादि पदार्थ जैसे किसी के प्रत्यक्ष हैं वैसे ही अनुमेय हैं या अन्य रूप से ? परोक्षवर्ती पदार्थों का ज्ञान कराने के लिये अनुमेयत्व हेतु असिद्ध है इस मान्यता का खंडन धर्म-अधर्म आदि पर्यायें अनित्य हैं क्योंकि वे पर्याय हैं इस प्रकार से जैनाचार्य सिद्ध करते हैं अनुमेयत्व का "श्रुतज्ञानाधिगम्यत्व" ऐसा अर्थ भी संभव है सूक्ष्मादि पदार्थ अनुमेय ही रहें प्रत्यक्ष ज्ञान के विषय न होवें क्या बाधा है ? अब अनुमान के अभाव को स्वीकार करने वाले चार्वाक को जैनाचार्य समझाते हैं। मीमांसक कहता है कि कोई भी व्यक्ति सूक्ष्मादि पदार्थों को साक्षात् करने वाला नहीं है..... सर्वज्ञ का अस्तित्व सिद्ध करने में आपका हेतु सर्वज्ञ के भाव का धर्म है या ......... अब यहां मीमांसक सौगतमत का आश्रय लेकर पक्ष रखता है पुनः जैनाचार्य उसका खंडन करते हैं मीमांसक कहता है कि जैनों का सर्वज्ञ धर्मी प्रसिद्ध सत्तावाला नहीं है इस प्रकार जैनाचार्य समाधान करते हैं। धर्मी की सत्ता सर्वथा प्रसिद्ध है या कथंचित् ? सूक्ष्मादि पदार्थ इन्द्रिय प्रत्यक्ष से किसी के प्रत्यक्ष हैं या नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष से ? नैयायिक कहता है कि योगज धर्म से अनुगृहीत इन्द्रियाँ परमाणु आदि को भी देख लेती हैं उसका निराकरण मानस प्रत्यक्ष से भी सूक्ष्मादि पदार्थों का ज्ञान नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only पृष्ठ नं० ३०३ ३०५ ३०६ ३०७ ३०८ ३१० ३१२ ३१३ ३१५. ३१६ ३१८ ३२१ ३२३ ३२५ ३३० ३३० ३३१ ३३३ ३३४ ३३५ ३३७ ३३८ ३३८ ३४२ www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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