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________________ अ. दो. 186 188 318 196 194 195 182 330 63 293 32 २-५६ २-५८ २-१८० २-६६ २-६४ २-६५ २-५२ २-१९२ १-६२ २-१५६ २-१३८ २-५० २-१४१ १-२३ 274 180 278 23 दोहासूची अ. दो 173 २-४४ वर जिय पावई 213 २-८२ वर णियदसण225 २-९४ वत्थुपणइ जेम 215 २-८४ वंदउ णिदउ 178 २-४८ वंदणु णिदणु 241 २-११० वंदणु णिदणु १-३२ वित्तिणिवित्तिहिं 205 TKM-२-७४५१ विसयकसाय वि 198 २-६८ विसयकसायहि १-४३ विसयकसायहि 8 १-८ विसयसुहई बे 319 २-१८१ विसयह उप्परि 211 २-८० विसयासत्तउ जीव 210 २-७९ वेहि सहि 126 १-१२३+२ 187 २-५७ सत्त वि मित्तु वि 260 २-१२६ सत्थु पढंतु वि 259 २-१२५ सयलपयत्थहं सयलवियप्पहं 112 १-११० सयलवियप्पहं जो १४५ २-१८ सयल वि संगण 262 २-१२८ सयलहं कम्महं १-१३ सबहिं रायहि १-११५ संता विसय जु 252 २-११८ सिद्धिहि केरा २-१८८ सिरिगुरु अक्ख हि 301 २-१६३ सुण्णउं पउं 122 १-१२० सुद्धहं संजमु 316 २-१७८ सुहपरिणामें 231 २-१०० सो जोइउ जो जोगवइ २-११२ सो पत्थि त्ति पएसो २-२१० सो पर वुच्चइ २-९२ २-८७ हरिहरबंभु वि 323 २-१८५ ह वरु बंभणु 152 २-२५ हउंगोरउ हर 235 214 बिणि वि दोस बुज्झइ सत्थई बुज्झंतह परमत्थु बोहणिमित्तें भणइ भणावइ भल्लाहं वि णासंति भवतणुभोय भव्वाभब्वह जो भाउ विसुद्धउ भावाभावाहिं संजुवउ भावि पणविवि भिण्णउ वत्थु जि भुंजंतु वि....जो भुजंतु वि णियमण मिलियउ मं पुणु पुण्णइं मारिवि चूरिवि मारिवि जीवह लक्खड़ा मुक्खु ण पावहि मुणिवरविंदहं मुत्तिविहूणउ मृढा सयलु वि मूढु वियवखणु मेल्लिवि सयल मोक्खु जि साहिउ मोक्खु म चिंतहि मोहु विलिज्जइ मणु राएं रंगिए रत्तें वत्थें जेम रायदोस बे रूवि पयंगा लक्खणछंदविवज्जियउ लाहहं कित्तिहि लेणहं इच्छइ लोउ विलक्खणु लोयागासु धरेवि 161 258 333 328 304 336 310 13 117 275 २-१०४ २-८३ २-३४ २-१९५ २-१९० २-१६६ २-१९८ २-१७२ २-१३९ २-६९ २-१ २-१५९ २-६७ २-७१ २-१३७*५ १-६५*१ १-१११ 199 326 128 297 197 201 213 67 113 246 349 223 218 135 83 82 २-८ १-८१ १-८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001524
Book TitleParmatmaprakash
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1988
Total Pages182
LanguagePrakrit, Apabhramsha, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size13 MB
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