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________________ जोइंदु-विरइउ [191 : २-६१191) देवह सत्यहं मुणिवरहँ भत्तिए पुण्णु हवेइ । कम्म-क्खउ पुणु होइ णवि अज्जउ ति भणेइ ॥६१॥ 192) देवह सत्थह मुणिवरह जो विद्देसु करेइ । णियमें पाउ हवेइ तसु जै संसारु भमेइ ।।६२॥ 193) पावेणारउ तिरिउ जिउ पुण्णे अमरु वियाणु । मिस्ते माणुस-गइ लहइ दोहि वि खइ णिव्वाणु ॥६३।। 194) वंदणु णिदण पडिकमण पुण्णहँ कारण जेण । करइ करावइ अणुमणइ एक्कु वि णाणि ण णेण ॥६४॥ 195) वंदणु णिदण पडिकमणु णाणिहिं एहु ण जुत्तु । एक्कु जि मेल्लिवि णाणमउ सुद्धउ भाउ पवित्तु ॥६५॥ 196) वंदउ णिदउ पडिकमउ भाउ असुद्धउ जासु । पर तसु संजमु अस्थि णवि जं मण-सद्धि ण तासु ॥६६।। 197) सुद्धहँ संजमु सोलु तउ सुद्धहँ सण णाणु । सुद्धहँ कम्मक्खउ हवइ सुद्धउ तेण पहाणु ॥६७॥ 198) भाउ विसुद्धउ अप्पणउ धम्म भणेविणु लेहु । चउ-गइ-दुक्खहं जो धरइ जीउ पडतउ एहु ॥६८॥ 199) सिद्धिहिँ केरा पंथडा भाउ विसुद्धउ एक्कु । जो तसु भावहँ मुणि चलइ सो किम होइ विमुक्कु ॥६९॥ 200) जहिं भावइ तहिं जाहि जिय जं भावइ करि तं जि । केम्वइ मोक्खु ण अत्थि पर चित्तहँ सुद्धि ण जं जि ॥७०॥ 201) सुह-परिणामे धम्मु पर असहे होइ अहम्मु ।। दोहि वि एहि विवीज्जयउ सुद्ध ण बंधइ कम्मु ॥७१।। 202) दाणि लब्भइ भोउ पर इंदत्तणु वि तवेण । जम्मण-मरण-विवज्जियउ पउ लब्भइ णाणेण ॥७२॥ 193) A पावि....मिस्सि; TK पुण्णे सुरवर होइ; T and K have the second line thus : माणुसु सिस्से मुणहि (K मुणिहि) जिय दोहि विमुक्कउ जोइ। 194) A C पडिकवणु; T and M करहि करावहि अणुमणुहि. 195) c interchanges the places of 194 and 195; Tणाणिहे Brahmadeva णाणिहु; C एउ for एहु; TKM मेल्लवि. ! 6) TKM वंदणु जिंदणु पडिकमणु; C पडिकवउ, B पडिकम्बउ. 197) TM दंसणाणु; c कम्मह खउ. 198) TKM लेउ for लेहु. 199) TKM सिद्धिहि केरउ पंथडउ, B सिद्धि हि केरउ पंथा; TKM कह for किम 200) Wanting in TKM; भावहि for भावइ; BC केमइ. 201) TKM पम्म परु असुहइ; A असुहिं 202) TKM दाणे....परु; BC दाणे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001524
Book TitleParmatmaprakash
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1988
Total Pages182
LanguagePrakrit, Apabhramsha, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size13 MB
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