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________________ -190 : २-६०] परमप्प-पयासु 179) गंथ, उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ । गंथहँ जेण विवाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥४९॥ 180) विसयहँ उपरि परम-मुणि देशु वि करइ ण राउ । विसयह जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ।।५०।। 181) देहहँ उप्परि परम-मणि देस वि करइ ण राउ। देहहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥५१॥ 182) वित्ति-णिवित्तिहिं परम-मुणि देस वि करइ ण राउ। बंधहँ हेउ वियाणियउ एयह जेण सहाउ ॥५२॥ 183) बंधहँ मोक्खहँ हेउ णि उ जो णवि जाणइ कोइ । सो सर मोहिं करइ जिय पुण्णु वि पाउ वि दोइ ।।५३।। 184) सण-णाण-चरित्तमउ जो णवि अप्पु मुणेइ । मोक्तहँ कारणु भणिवि जिय सो पर ताई करेइ ॥५४॥ 185) जो णवि मण्णइ जीउ समु पुण्ण वि पाउ वि दोइ । सो चिरु दुक्खु सहंतु जिय मोहिं हिंडइ लोइ ॥५५॥ 186) वर जिय पावई संदरइँ णाणिय ताइँ भणति । जीवहँ दुक्खइँ जणिवि लहु सिवमइँ जाइँ कुणंति ।।५६।। 187) मं पुणु पुण्णइँ भल्ला िणाणिय ताई भणंति । जोवहँ रज्जई देवि लहु दुक्खइ जाइ जणंति ॥५७।। 188) वर णिय-दसण-अहिमुहउ मरणु वि जीव लहेसि । मा णिय- सण-निम्मुहउ पुष्णु वि जीव करेसि ||५८।। 189) जे णिय-दसण अहिमहा सोक्खु अणंतु लहंति । ति विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहति ॥५९॥ 190) पुण्णेण होइ विहवो विहवेण मओ मरण मइ-मोहो । मइ मोहेण य पावं ता पुण्णं अम्ह मा होउ ॥६०॥ 179) Wanting in TKM. 180) Wanting in TKM; C बंधहु हेउ for विसयहं जेण. 181) Wanting in TKM. 182) Wanting in TKM; Brahmal va has an alternative reading for the 2nd lin: भिण्णउ जेण वियाणियउ एयह अप्पसहाउ. 183) A णिरु for णिउ, TKM मोहे....जिउ, लोइ fo: दोइ. 134) ABC सिद्धिहि कारणि; TKM मुणवि for भणिवि 185) B जीव सम; C दोवि. TKM बेइ; TEM मोहे. 186) TKM जणेइ for जणिवि3; BC सिवगइ. 187) TKM रज्जुइ....लहुं. 188) TM णियदंसणे, सहेसि for लहेसि ( B लहीसि ); TKM मं for मा; BTKM करीसि. 189) AC सुक्खु; TKMB तें; B करंताह, TKM करेंताई. 150) Wanting in BC; TKM अइमोहो । अइमोहेण वि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001524
Book TitleParmatmaprakash
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1988
Total Pages182
LanguagePrakrit, Apabhramsha, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size13 MB
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