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अप्पडिहय-वर-नाण - दसण- । शिव-उपद्रवोंसे रहित । अयलधराणं-जो नष्ट नहीं हो ऐसे
स्थिर । अरुय-व्याधि और श्रेष्ठ केवलज्ञान तथा केवलदर्श
वेदनासे रहित । अणंतनको धारण करनेवाले हैं उनको।। अप्पडिहय-नष्ट नहीं हो ऐसा । अन्त-रहित । अक्खय
नाण-ज्ञान । सण-दर्शन । क्षयरहित । अव्वाबाह-कर्मवियट्ट-छउमाणं-जिनकी छद्म
जन्य पीडाओंसे रहित । स्थता चली गयी है उनको, छद्मस्थतासे रहितोंको।
अपुणरावित्ति-जहाँ जानेके जिणाणं जावयाणं-जीतनेवा
बाद वापस आना नहीं
रहता ऐसा । लोंको तथा जितानेवालोंको,
सिद्धिगइ-नामधेयं-सिद्ध . गति जो स्वयं जिन बने हुए हैं । तथा दूसरोंको भी जिन बनाने
नामवाले। वाले हैं उनको ।
ठाणं-स्थानको। तिन्नाणं तारयाणं-जो संसार- संपत्ताणं-प्राप्त किये हुओंको।
समुद्रसे पार होगये हैं, तथा | नमो-नमस्कार हो । दूसरोंको भी पार पहुँचानेवाले जिणाणं-जिनोंको। हैं उनको।
जिअ-भयाणं-भय जीतनेवालोंको। बुद्धाणं बोहयाणं-जो स्वयं बुद्ध | जे-जो।
हैं तथा दूसरोंको भी बोध देने- अ-और । · वाले हैं उनको ।
अईआ सिद्धा-भूतकालमें सिद्ध मुत्ताणं-मोअगाणं-जो मुक्त हैं
और दूसरोंको मुक्ति दिलानेवाले भविस्संति-होंगे। हैं, उनको। सम्वन्नणं सव्वदरिसीणं-सर्व
(अ)णागए काले-भविष्यकालमें । ज्ञोंको, सर्वदर्शियोंको।
संपइ-वर्तमानकालमें।
अ-तथा। सिवमयलमरुयमणंतमक्खयम
वट्टमाणा-वर्तमान । व्वाबाहमपुणरावित्ति-शिव,
सव्वे-सबको। अचल, अरुज, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध और अपुन
तिविहेण-मन, वचन और कायसे । रावृत्ति ।
| वंदामि-मैं वन्दन करता हूँ।
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