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( २ )
चारो मंगल चार आज, चारो मंगल चार । देख्यो दरस सरस जिनजोको, शोभा सुन्दर सार || आज० ।। १ ।। छिनुछिनुछिनुं मनमोहन चरचो, घसी केसर घनसार । आज० ॥ २ ॥ विविध जाति के पुष्प मंगावो, मोगर लाल गुलाल | आज० ॥ ३ ॥ धूप उखेवो ने करो आरती, मुख बोलो जयकार । आज० ॥ ४ ॥ हर्ष धरी आदीश्वर पूजो, चौमुख प्रतिमा चार । आज० ।। ५ ।। हैये धरी भाव भावना भावो, जिम पामो भवपार । आज० ।। ६ ।। सेवक जिनजीको, आनंदघन उपकार | आज० ॥ ७ ॥ सकलचन्द
( ३० )
छूटे बोल मार्गानुसारीके ३५ बोल.
१ न्यायसम्पन्न - विभव - - न्याय से धन प्राप्त करना | स्वामि-द्रोह करके, मित्रद्रोह करके, विश्वास दिलाकर ठगनेसे, चोरी करके, धरोहर आदिमें बदलकर आदि निन्द्य काम करके धन प्राप्त नहीं करना ।
२ शिष्टाचार - प्रशंसा - उत्तम पुरुषोंके आचरणकी प्रशंसा करनी । ३ समान कुलाचारवाले किन्तु अन्य गोत्री के साथ विवाह - सम्बन्ध
करना ।
४ पाप-कार्य से डरना ।
५ प्रसिद्ध देशाचार के अनुसार वर्तन करना ।
६ किसीका अवर्णवाद बोलना नहीं किसीकी निन्दा नहीं करनी ।
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