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त्रोजे दिने श्रीपार्श्व विख्यात, वली नेमिसरनो अवदात,
बली नवभवनी बात । चोवीशे जिन अन्तर तेवीश, आदि जिनेश्वर श्रीजगदीश,
तास वखाण सुणीश; धवल मङ्गल गीत गहुँली करीए, वली प्रभावना नित अनुसरीए,
____ अट्ठम तप जय वरीए ॥२॥ आठ दिवस लगे अमर पलावो, तेह तणो पडहो वजडाओ
ध्यान धरम मन भावो; संवत्सरी-दिन-सार कहेवाय, संघ चतुर्विध भेलो थाय,
बारसा-सूत्र सुणाय । थिरावली ने सामाचारी, पट्टावली प्रमाद निवारी,
सांभलजो नरनारी; आगम सूत्रने प्रणमीश, कल्पसूत्रशुं प्रेम धरोश,
शास्त्र सर्व सुणीश ॥ ३ ॥ सत्तरभेदी जिनपूजा रचावो, नाटक केरा खेल मचावो,
विधिशुं स्नात्र भणावो; आडम्बरशुं दहेरे जईए, संवत्सरी पडिक्कमणुं करीए,
संघ सर्वने खमीए। पारणे साहम्मिवच्छल कीजे, यथाशक्तिए दान ज दोजे,
पुण्य भण्डार भरीजे; श्रीविजयक्षेमसूरि गणधार, जसवन्तसागर गुरु उदार,
जिणंदसागर जयकार ॥४॥
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