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________________ ५४१ [१६] पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणकी विधिके हेतु दिन और रात्रिके अन्तमें प्रतिदिन प्रतिक्रमण करनेपर भी यदि किसी अतिचारका विस्मरण हुआ हो, अथवा याद करने पर भी भयादिके कारण गुरु-समक्ष उसका प्रतिक्रमण नहीं किया हो, अथवा मन्द परिणामके कारण उसका सम्यक् प्रकारसे प्रतिक्रमण न हुआ हो, ऐसे अतिचारोंका प्रतिक्रमण करनेके लिये तथा विशेष शुद्धिके लिये पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किया जाता है। कहा है कि "जह गहं पइ-दिवसं पि, सोहियं तह वि पव्व संधीसु । सोहिज्जइ सविसेसं, एवं इहयं पि नायव्वं ॥" -जैसे घर प्रतिदिन साफ किया जाता है, तो भी पर्वके दिनोंमें उसकी विशेष प्रकारसे सफाई की जाती है, ऐसे यहाँ भी जानना चाहिये। १. पाक्षिकादि-प्रतिक्रमणमें प्रारम्भकी 'सावग-पडिक्कमण-सुत्त' तककी विधि दैवसिक प्रतिक्रमणके अनुसार की जाती है, अतः उसके हेतु भी तदनुसार समझने चाहिए। इसके पश्चात् शीघ्र ही पक्खीप्रतिक्रमण प्रारम्भ करनेका हेतु यह है कि पक्खी-प्रतिक्रमण यह चौथा आवश्यक है, अतः उसका यहीं अनुसन्धान हो । २. फिर गुर्वादिकको खमानेसे ही सर्व अनुष्ठान सफल होते हैं, इसलिये 'अन्भुट्ठिओ हं संबुद्धा! खामणेणं', इत्यादि पाठद्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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