SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 549
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३२ फिर गुरुमहाराजके प्रति हुए अपने अपराधोंके क्षमापनके लिये द्वादशावर्त्त-वन्दना करना चाहिये । शास्त्रकारोंने साधुओं को - गुरुको आठ कारणोंसे ( प्रसङ्गों पर ) वन्दन करनेके लिये कहा है । इस प्रकार: -- " पडिक्कमणे सज्झाये, काउस्सग्ग- वराह - पाहुणए । आलोयण- संवरणे, उत्तमट्टे य वंदणयं ॥” प्रतिक्रमण करते, सज्झाय ( स्वाध्याय) करते, कायोत्सर्ग करते, अपराधको क्षमा माँगते, अतिथि- साधु के आने पर, आलोयण लेते, प्रत्याख्यान करते और अनशन करते, ऐसे आठ प्रसङ्गोंपर द्वादशावर्त्त -वन्दन करना । फिर. 'अभुट्टिओहं अमितर' के पाठसे गुरुमहाराजको खमाना। ८. प्रतिक्रमण करने पर भी जिन अतिचारोंकी शुद्धि नहीं हुई हो, उनको शुद्धि करनेके लिये पाँचवें आवश्यकमें प्रवेश किया जाता है । परन्तु यह क्रिया करनेसे पूर्व उपर्युक्त शास्त्र वचनानुसार प्रथम गुरुको वन्दन किया जाता है और फिर अवग्रहमेंसे पीछे हटकर 'आयरिय उवज्झाय-सूत्र' बोला जाता है वह यह बतलानेके लिये कि अपने से आचार्य, उपाध्याय, स्थविरादिके प्रति जो कषायका सेवन हुआ हो, उससे वापस लौट रहा हूँ । काउस्सग्गकी सिद्धिके लिये कषायकी ऐसी शान्ति उपयुक्त है । १. कुछ आचार्योंके मत से 'आयरियाइ - खामणासुत्त, तककी विधि 'प्रतिक्रमण आवश्यक' है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy