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फिर गुरुमहाराजके प्रति हुए अपने अपराधोंके क्षमापनके लिये द्वादशावर्त्त-वन्दना करना चाहिये । शास्त्रकारोंने साधुओं को - गुरुको आठ कारणोंसे ( प्रसङ्गों पर ) वन्दन करनेके लिये कहा है । इस
प्रकार:
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" पडिक्कमणे सज्झाये, काउस्सग्ग- वराह - पाहुणए । आलोयण- संवरणे, उत्तमट्टे य वंदणयं ॥”
प्रतिक्रमण करते, सज्झाय ( स्वाध्याय) करते, कायोत्सर्ग करते, अपराधको क्षमा माँगते, अतिथि- साधु के आने पर, आलोयण लेते, प्रत्याख्यान करते और अनशन करते, ऐसे आठ प्रसङ्गोंपर द्वादशावर्त्त
-वन्दन करना ।
फिर. 'अभुट्टिओहं अमितर' के पाठसे गुरुमहाराजको खमाना।
८. प्रतिक्रमण करने पर भी जिन अतिचारोंकी शुद्धि नहीं हुई हो, उनको शुद्धि करनेके लिये पाँचवें आवश्यकमें प्रवेश किया जाता है । परन्तु यह क्रिया करनेसे पूर्व उपर्युक्त शास्त्र वचनानुसार प्रथम गुरुको वन्दन किया जाता है और फिर अवग्रहमेंसे पीछे हटकर 'आयरिय उवज्झाय-सूत्र' बोला जाता है वह यह बतलानेके लिये कि अपने से आचार्य, उपाध्याय, स्थविरादिके प्रति जो कषायका सेवन हुआ हो, उससे वापस लौट रहा हूँ । काउस्सग्गकी सिद्धिके लिये कषायकी ऐसी शान्ति उपयुक्त है ।
१. कुछ आचार्योंके मत से 'आयरियाइ - खामणासुत्त, तककी विधि 'प्रतिक्रमण आवश्यक' है ।
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