SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७७ प्रमार्जना मिलकर कुल ७ नहीं होती और शेष १८ होती हैं। स्त्रियोंको मस्तककी तीन भी नहीं होता हैं अतः कुल १५ होती है। ध्यान रहे कि मुहपत्ती पडिलेहणकी इस विधिका सामायिक करते समय तथा पूर्ण करते समय बराबर उपयोग हो । [२] प्रतिक्रमण सम्बन्धी उपयोगी सूचनाएँ १-समय दैवसिक प्रतिक्रमण दिनके अन्तिम भागमें अर्थात् सूर्यास्त समय में करना चाहिये । शास्त्रोंमें कहा है कि "अद्ध निवुड्ढे बिबे, सुत्तं कड्ढन्ति गोयत्था। इय वयण-पमाणेणं, देवसियावस्सए कालो॥" सूर्यबिम्बका अर्धभाग अस्त हो तब गीतार्थ प्रतिक्रमण-सूत्र कहते हैं । इस वचन-प्रमाणसे देवसिक-प्रतिक्रमणका समय जानना। तात्पर्य यह है कि प्रतिक्रमण सूर्यास्तके समय करना चाहिये । __शास्त्रमें 'उभओ-कालमावस्सयं करेइ' ऐसा जो पाठ आता है, वह भी प्रतिक्रमण सन्ध्या-समयमें करनेका सूचन करता है। __ अपवाद-मार्गमें दैवसिक-प्रतिक्रमण दिनके तीसरे प्रहरसे मध्यरात्रि होनेसे पूर्व तक हो सकता है और योगशास्त्रवृत्तिके अभिप्रायानुसार मध्याह्नसे अर्धरात्रि पर्यन्त हो सकता है । रात्रिक-प्रतिक्रमण मध्यरात्रिसे मध्याह्न तक हो सकता हैकहा है कि: 'उग्घाडपोरिसिं जा, राइअमावस्सयस्स चुन्नीए। ववहाराभि-पाया, भणंति जाव पुरिमड्ढ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy