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इस प्रार्थनामें प्रथम उनका प्रसाद ( कृपा ) मांगा है, तदनन्तर आरोग्य अर्थात् कर्मक्षय, बोधिलाभ अर्थात् जैनधर्म की प्राप्ति और उत्तम भाव-समाधि माँगी है तथा अन्तमें सिद्धिकी इच्छा प्रकट की है ।
अरिहन्त भगवान्का स्तवन करनेसे सम्यक्त्वकी शुद्धि होती है एवं श्रद्धा, संवेग आदि गुणोंका सत्त्वर विकास होता है । ____ कायोत्सर्गमें इस सूत्रके प्रत्येक शब्दका अर्थ विचारनेसे भावका उल्लास होता है, चित्तकी शुद्धि होती है तथा ध्यान-सम्बन्धी योग्यता प्राप्त होती है !
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