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कष्टादि आने पर इहलोक परलोक के लिए पूजा मानता की। बौद्ध, सांख्यादिक संन्यासी, भगत, लिंगिये जोगी, फकीर, पीर इत्यादि अन्य दर्शनियों के मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र के चमत्कार देखकर परमार्थ जाने बिना मोहित हुआ। कुशास्त्र पढ़ा, सुना । श्राद्ध, संवत्सरी, होली, राखडी पूनम (राखी) अजा-एकम, प्रेत दूज, गौरी ताज, गणेश चौथ, नागपंचमी स्कंद षष्ठ, झीलणा छठ, शील सप्तमी, दुर्गाष्टमी, रामनौमी, विजया-दशमी, एकादशी-व्रत, वामन-द्वादशी, वत्सद्वादशी, धन-तेरस, अनंत-चौदस, शिव-रात्री, काली-चौदस, अमावस्या, आदित्यवार, उत्तरायण याग-भोगादि किये, कराये, करते हुए को भला माना। पीपल में पानी डाला, डलवाया । कुआँ, तालाब, नदो, द्रह, बावड़ी, समुद्र, कुड ऊपर पुण्य निमित्त स्नान तथा दान किया, कराया, या अनुमोदन किया । ग्रहण, शनिश्चर, माघ मास, नवरात्रि का स्नान किया। नवरात्रि व्रत किया । अज्ञानियों के माने हुए व्रतादि किये, कराये । वितिंगिच्छा:-धर्म संबंधी फल में सदेह किया। जिन वीतराग अरिहंत भगवान् धर्म के आगार विश्वोपकार-सागर, मोक्षमार्ग दातार इत्यादि गुणयुक्त जान कर पूजा न की। इस-लोक परलोक सम्बन्धी भोग-वांछा के लिए पूजा की । रोगांतिक कष्ट के आने पर क्षीण वचन बोला । मानता मानी। महात्मा, महासती के आहार पानी
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