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सचित्ते निक्खिवणे०॥ इस | निरादरपणे-आदर विना, बहु
गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र | मान विना । ३२ गाथा ३० ।
नाणाइ-अट्ट-ज्ञानादिक आठ । बुद्ध-बुद्धिसे ।
अर्थात् ज्ञानाचार, दर्शनाचार टली-दूसरे काम पर गया (निवृत्त | और चारित्राचार इन प्रत्येकके हुआ।
आठ आठ, कुल चौबीस । क्षीण-दुःखी।
पइवय-प्रतिव्रत, प्रत्येक व्रतके, अनुकंपा-दान-दयाकी भावनासे स्थूल- प्राणातिपात - विरमण प्रेरित होकर दान देना।
आदि बारह व्रतोंके । इए लोए परलोए० ॥ इस गाथा- सम्म-संलेहण - सम्यक्त्व तथा
के अर्थके लिये देखो सूत्र ३२, . संलेखनाके । गाथा ३३ ।
पण-पाँच अणसणमणोअरिआ० ॥ इस बारह व्रत, सम्यक्त्व और
गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र संलेखना, इन प्रत्येकके पाँच २८, गाथा ६।
पाँच, इस तरह कुल सत्तर । फेड्यो नहि-रोका नहीं। पन्नर कम्मेमु-पन्द्रह कर्मादानके काचं पाणी-तीन उफान नहि
पन्द्रह। आया हुआ गरम पानी अथवा
बारस-तव-बारह प्रकारके तपके अचित्त नहीं किया हुआ पानी।
बारह ।
वीरिअतिगं-वीर्याचारके तीन । पायच्छित्तविणओ० ।। इस
चउवीस-सयं- अइआरा - इस गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र
प्रकार सब मिलाकर एकसौ २८, गाथा ७ ।
चौबीस अतिचार । लेखां शुद्ध-पूरी गिनतीपूर्वक।
२४+७०+१५+१२+३=१२४ । अणिगहिअ- बल -- वीरिओ०- प्रतिषेध-निषिद्ध किये हुए।
इस गाथाके अर्थके लिये देखो | कुमति लगे-मिथ्या बुद्धिसे । सूत्र २८, गाथा ८। | चिहुँ-चार।
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