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________________ ४४८ सचित्ते निक्खिवणे०॥ इस | निरादरपणे-आदर विना, बहु गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र | मान विना । ३२ गाथा ३० । नाणाइ-अट्ट-ज्ञानादिक आठ । बुद्ध-बुद्धिसे । अर्थात् ज्ञानाचार, दर्शनाचार टली-दूसरे काम पर गया (निवृत्त | और चारित्राचार इन प्रत्येकके हुआ। आठ आठ, कुल चौबीस । क्षीण-दुःखी। पइवय-प्रतिव्रत, प्रत्येक व्रतके, अनुकंपा-दान-दयाकी भावनासे स्थूल- प्राणातिपात - विरमण प्रेरित होकर दान देना। आदि बारह व्रतोंके । इए लोए परलोए० ॥ इस गाथा- सम्म-संलेहण - सम्यक्त्व तथा के अर्थके लिये देखो सूत्र ३२, . संलेखनाके । गाथा ३३ । पण-पाँच अणसणमणोअरिआ० ॥ इस बारह व्रत, सम्यक्त्व और गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र संलेखना, इन प्रत्येकके पाँच २८, गाथा ६। पाँच, इस तरह कुल सत्तर । फेड्यो नहि-रोका नहीं। पन्नर कम्मेमु-पन्द्रह कर्मादानके काचं पाणी-तीन उफान नहि पन्द्रह। आया हुआ गरम पानी अथवा बारस-तव-बारह प्रकारके तपके अचित्त नहीं किया हुआ पानी। बारह । वीरिअतिगं-वीर्याचारके तीन । पायच्छित्तविणओ० ।। इस चउवीस-सयं- अइआरा - इस गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र प्रकार सब मिलाकर एकसौ २८, गाथा ७ । चौबीस अतिचार । लेखां शुद्ध-पूरी गिनतीपूर्वक। २४+७०+१५+१२+३=१२४ । अणिगहिअ- बल -- वीरिओ०- प्रतिषेध-निषिद्ध किये हुए। इस गाथाके अर्थके लिये देखो | कुमति लगे-मिथ्या बुद्धिसे । सूत्र २८, गाथा ८। | चिहुँ-चार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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